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जौनपुर की बड़ी मस्जिद क्या जैन मन्दिर है ? : ८७
मुनिश्री ने लिखा है कि “यहाँ कभी जैनधर्म का साम्राज्य रहा है। इसका पुराना नाम 'जैनपुरी' था। गोमती नदी के किनारे जैन मन्दिर थे । यहाँ खुदाई करते समय अनेक जैन मूर्तियाँ निकली हैं, उनमें से बहुत-सी जैन मूर्तियाँ काशी के जैन मंदिर में हैं। "
यहाँ एक विशाल मस्जिद है जो कभी १०८ कुलिकाओं वाला जैन मंदिर था। उस गगनचुम्बी भव्य जैन मंदिर को ही मस्जिद रूप में परिवर्तित किया गया है। बाहरी भाग में तो कई जगह शुद्धि - वृद्धि किया गया है परन्तु आन्तरिक भाग से जैन मंदिर का घाट साफ-साफ दिखाई देता है।
इस मस्जिद में एक बड़ा भंवरा है, जिसमें अनेक खण्डित - अखण्डित जैन मूर्तियाँ हैं। मंदिर का स्थापत्य और शिल्प आश्चर्यचकित कर देने वाला है । वहाँ के एक-दो मुसलमानों से पूछने पर ज्ञात हुआ कि यहाँ पहले जैनियों का एक बड़ा मन्दिर था, जिसे बादशाह ने तुड़वाकर मस्जिद बनवा दी। एक-दो ब्राह्मण पंडितों से पूछने पर मालूम हुआ कि इस शहर का नाम पहले 'जैनपुरी' था, उसी शब्द से जैनाबाद, जौनाबाद और अन्त में जौनपुर प्रसिद्ध हुआ ।
इस प्रान्त में ऐसा विशाल जैन मन्दिर एक ही था। आगरा से लेकर कलकत्ता तक के मार्ग में ऐसा विशाल मंदिर हमारे देखने में नहीं आया। यहाँ कभी हजारों जैन बस्तियाँ थीं, पर आज एक भी घर जैनों का नहीं है।
१५वीं से १७वीं शताब्दी तक के जौनपुर सम्बन्धी अनेक जैन उल्लेख हमारी जानकारी में हैं और उनमें से कुछ तो प्रकाशित भी हो चुके हैं। उन सबका संग्रह करके यहाँ के जैन इतिहास पर एक बड़ा निबन्ध लिखा जाना आवश्यक है।
यहाँ के जैनों का कला के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान रहा है । उदयपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर परमानन्द गोयल का एक लेख विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में पढ़ा गया था। वह लेख जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान नामक ग्रन्थ के पृष्ठ १५० में प्रकाशित हुआ है। 'जैन कला का योगदान' नामक इस निबन्ध में लिखा है कि जौनपुर में वेणीदास गौड़ नामक चित्रकार ने कल्पसूत्र के चित्र बनाये थे। जौनपुर के और भी ३ कल्पसूत्र प्राप्त हुए हैं, जिनमें से एक तो स्वर्णाक्षरों में लिखा हुआ है। उसकी प्रति इस समय बड़ौदा के जैन ज्ञानमंदिर में है। श्री साराभाई नवाब के जैन चित्र कल्पद्रुम में यहाँ के एक सचित्र कल्पसूत्र के चित्र छपे हैं और उस प्रति का विवरण भी इस ग्रन्थ में दिया गया है।
पाठकों की जानकारी के लिए मैं यहाँ एक नयी सूचना भी देना आवश्यक समझता हूँ कि जौनपुर के धनिक श्रावकों के लिए लिखी हुई कल्पसूत्र की गुटकाकार बड़ी प्रति हमारे संग्रह में सेठ शंकरदान नाहटा कलाभवन में है, जो लेखनकला की
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