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________________ ८२ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५ शैवों की कड़ी प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ा था। सम्भवतः इसलिए उत्पीड़न से त्रस्त होकर कुछ जैन गुजरात तथा राजस्थान में आ गये थे। इस युग के जैनधर्म के प्रमुख आचार्य हरिभद्रसूरि (७००-७७०) थे, जिन्होंने जैन धर्म को अन्य धर्मों की अपेक्षा अत्यधिक मानवीय समझकर अपनाया तथा इसके विकासार्थ यथासम्भव प्रयत्न किया। जिस समय इस विद्वान ब्राह्मण ने जैन धर्म को अंगीकार किया उस समय इसकी स्थिति दयनीय थी, तथा इस धर्म में भी वह सभी क्रिया-कलाप होता था, जो जैन धर्म के अन्तर्गत वर्जित था। हरिभद्रसूरि ने इस पाखण्ड के विरुद्ध आवाज उठाई और जैनधर्म पर १४०० पुस्तकें लिखीं। सम्भवतः यह अतिशयोक्ति हो, फिर भी इतना तो मानना ही पड़ेगा कि जैनधर्म के प्रचार हेतु जो कुछ उन्होंने किया वह किसी भी जैनधर्म प्रचारक से कम नहीं था। हरिभद्रसूरि ने जिस कार्य का शुभारम्भ किया, उसको उनके शिष्य उद्योतन और सिद्वर्षि सूरि ने आगे बढ़ाया। इस युग में गुजरात और विशेषरूप से वल्लभी श्वेताम्बर जैनियों का केन्द्र था। गुजरात के चालुक्य वंशी पूरी तरह से जैन धर्म के प्रति उदार थे । ऐसा कहा जाता है कि इस वंश के संस्थापक मूलराज ने अन्हिलवाड पाटन में मूलपष्ठिका नामक जैन मन्दिर का निर्माण कराया था। हरिभद्र ने आठवीं शताब्दी में जैनधर्म के प्रचार के लिये गुजरात में विशेष प्रयत्न किये। हस्तिकुण्डी वंशी राष्ट्रकूट नरेश विदग्धराज ने राजस्थान और गुजरात में कई जैन मन्दिरों का निर्माण कराया । मूलराज के उत्तराधिकारी चामुण्डराज ने भी "जिनबिम्ब" और "जिनपूजा' हेतु दान दिया था३। दुलर्भराज के दरबार में १०२४ ई० में जिनेश्वर और चैत्यवासियों में शास्त्रार्थ हुआ था। जिसमें जिनेश्वर ने चैत्यवासियों को हराया। दलर्भराज ने जैनधर्म के प्रति श्रद्धावनत हो जिनेश्वर को खरतर (तीव्र बुद्धि) की उपाधि से विभूषित किया। अन्हिलवाड के प्रसिद्व व्यापारी ने ऋषभदेव के मन्दिर का निर्माण कराया था। प्रतिहार शासक वत्सराज ने कन्नौज तथा ग्वालियर में महावीर स्वामी की भव्य मूर्तियों की स्थापना की थी। एक जैन ग्रन्थ में उन्हें अम्मा नाम से सम्बोधित किया गया था। गिरनार श्वेताम्बर जैनों का मुख्य तीर्थ था। सपादलक्ष, त्रिभुवनगिरी, अर्बुदाचल आदि में जैन अच्छी संख्या में रहते थे। भीम प्रथम के शासनकाल में उनके दण्डनायक विमल ने वर्द्धमान सूरि की प्रेरणा से आबू में सन् १०३१ ई० में आदिनाथ का प्रसिद्व जैनमन्दिर बनवाया। विमल को अपने शासनकाल का उदार संरक्षण और स्वीकृति निश्चय ही प्राप्त हुई होगी। जयसिंह सिद्धराज और उसके उत्तराधिकारी कुमारपाल चालुक्यों के काल में जैन धर्म गुजरात में और अधिक प्रभावशाली हो गया। सिद्धराज ने सोमनाथ से लौटते समय नेमिनाथ मन्दिर के दर्शन किये१८ तथा शत्रुजय तीर्थ को आर्थिक सहायता दी१९। उसने सिद्धपुर में महावीर चैत्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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