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________________ मुहम्मद तुगलक और जैन धर्म : ७७ को प्रसन्न कर आचार्य ने उपयुक्त अवसर देखकर उक्त महावीर की मूर्ति की माँग की। सुल्तान ने सहर्ष उनकी इस मॉग को स्वीकार कर लिया।१५ आचार्य के साथ सुल्तान के ऐसे ही अनेक भेंटों का उल्लेख मिलता है। आचार्य महाराष्ट्र भी गये। सुल्तान ने भव्य उपहार देकर आचार्य को विदा किया और दक्षिण में उनके रहने की सुविधाजनक व्यवस्था की। यह कहा जाता है कि वे सुल्तान के साथ पैठन गये और उन्होंने जैन तीर्थंकर मुनि सुव्रत की प्रतिमा का अवलोकन किया।१६ आचार्य के निर्देशन में ही सुल्तान ने पालिताना, शत्रुजय और ग़िरनार के मन्दिरों और मूर्तियों का दर्शन किया। शत्रुजय मन्दिर में तो एक जैन संघ के नेता की भांति सुल्तान ने धार्मिक संस्कार भी किये।१७ सुल्तान और जैन आचार्य के भेंट होने के अन्य दृष्टान्त भी प्राप्त हैं। एक बार जब सुल्तान अपनी माँ के स्वागतार्थ गया हआ था, तो उसने जैन आचार्य से मुलाकात की। जैन आचार्य को 'अभिनवसराय में ठहराया गया,जो बाद में 'भट्टारय शरत' कहलाया। यहाँ तक कि जब सुल्तान अपने पूर्वी इलाकों की विजय के लिए गया हुआ था, तब भी जैन आचार्य उसके साथ थे। किन्तु बाद में, शिविर का जीवन आचार्य के लिए कष्टकर समझ कर सुल्तान ने उनके वापस लौटने की व्यवस्था की।१८ कन्यान्य महावीर कल्पपरिषद् से विदित होता है कि आचार्य ने सुल्तान से अनेक फरमान प्राप्त कर जैन तीर्थस्थानों, यथा पेथाड, सराज, अचला आदि चैत्यों की सुरक्षा का आश्वासन प्राप्त किया।१९ 'खरतरगच्छ पट्टावली' से पता चलता है कि राघव चेतन नामक अन्य विद्वान मुहम्मद तुगलक के दरबार में सम्मानित था। परन्तु दुष्ट-प्रकृति का होने के कारण आचार्य से उसकी नहीं पटती थी। दरबार से राघव चेतन को हटा कर आचार्य जिनप्रभ सूरि का सम्मानित होना, इस काल की एक महत्त्वपूर्ण घटना है।२० जैन परम्पराओं से भी इसकी पुष्टि होती है। जैन श्रोतों से यह विदित होता है कि, खोरासान से आये एक कलन्दर और जैन-आचार्य के बीच तान्त्रिक शक्ति की होड़ लगी थी।२१ यह घटनाएँ स्पष्ट करती हैं कि न केवल आचार्य, वरन् अन्य धर्मावलम्बियों से भी मुहम्मद तुगलक का दरबार सुशोभित था। जिनप्रभ सूरि के अन्य शिष्य महेन्द्र सूरि का भी वह अत्यधिक सम्मान करता था। सुल्तान ने इन्हें अनेक उपहार देकर 'महात्मा' शब्द से सम्बोधित किया।२२ सुल्तान मुहम्मद तुगलक के समय सिंहकृति नामक कवि का उल्लेख मिलता है। पद्मावती वस्त्री अभिलेख से विदित होता है कि १३२६-१३२७ ई० में सुल्तान ने बौद्ध-धर्मानुयायियों को परास्त करने के लिए इन्हें दक्षिण से बुलवाया था।२२ जिनप्रभ सूरि के अलावा अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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