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श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५
मुहम्मद तुगलक बहुत प्रभावित था। सुल्तान उसे अपना भाई मानता था। मुहम्मद तुगलक ने उसे तेलंगाना का गवर्नर बनाया था। यहाँ उसने अनेक मन्दिरों का निर्माण किया।९ गुणचन्द्र नामक व्यक्ति भी सुल्तान का कृपा-पात्र था। सुल्तान ने उसे उपहार में स्वर्ण दिया था।१०
मुहम्मद तुगलक पर सर्वाधिक प्रभाव जिनप्रभ सूरि का था। जिनविजय के अनुसार आचार्य जिनप्रभ सूरि प्रथम व्यक्ति हैं, जिन्होंने दिल्ली दरबार में जैन-धर्म का प्रचार किया। प्राकृत और संस्कृत के ग्रन्थों में इन घटनाओं का उल्लेख मिलता है। इन सम्बन्धों के कारण जैन-धर्म का प्रभाव बढ़ा, और वह तुर्क-आक्रमण तथा सल्तनत के अन्य धार्मिक विरोधों से सुरक्षित हो गया।
जिनप्रभ सूरि के लिखित ग्रन्थ 'विविध तीर्थकल्प' में वर्णित है कि विक्रम संवत् १३८५ पौष की एक शाम को आचार्य सुल्तान मुहम्मद से मिलने राजमहल में गये। अर्धरात्रि तक सुल्तान और आचार्य वाद-विवाद करते रहे। आचार्य ने बाकी रात भी महल में बिता दी। प्रात:काल सुल्तान ने उन्हें विशाल संख्या में पशु, धन, वस्त्र आदि उपहार में दिये, किन्तु आचार्य ने बड़ी नम्रता के साथ इसे लेना अस्वीकार कर दिया और सुल्तान से जैन-तीर्थों की सुरक्षा के लिए शाही-फरमान माँगा। सुल्तान ने आचार्य के इस माँग को स्वीकार कर लिया। इस विवाद की समाप्ति पर हाथियों पर शाही जुलूस निकला। एक हाथी पर जिनप्रभ सूरि तथा दूसरे पर जोनदेव आचार्य बैठे । नृत्य-संगीत और दरबारी अमीरों से घिरा यह जुलूस पौषधशाला तक पहुँचा। यहाँ आचार्य ने जैन रीति के अनुसार कुछ धार्मिक संस्कार किये।१२ ऐसा अनुमान है कि सुल्तान ने एक अन्य फरमान देकर भिक्षुओं को रहने के लिए उप-वसति निर्माण करने की आज्ञा प्रदान की।१३ आगे वर्णित है कि १३८५ संवत् में ही वियावंश के एक व्यक्ति (सम्भवत: यह व्यक्ति शिकदार था) ने असीनगर (सम्भवत: असीरगढ़) पर आक्रमण कर अनेक जैन भिक्षुओं को कैद किया। पार्श्वनाथ की मूर्ति तोड़ डाली और महावीर जी की मूर्ति दिल्ली ले आया। यह मूर्ति तुगलकाबाद के खज़ाने में रख दी गयी, जहाँ वह पन्द्रह माह तक पड़ी रही।४
इस मूर्ति को प्राप्त करने के लिये जैनियों ने कुछ प्रयास किया। इसी सन्दर्भ में जैन-आचार्य जिनप्रभ सूरि का सुल्तान के साथ भेंट करने का उल्लेख मिलता है। वर्षाऋतु में आचार्य सुल्तान से मिलने गये। वर्षा के कारण आचार्य के पैरों में कीचड़ लग गया था। सुल्तान ने अपने हाथों से उनके पावों से कीचड़ साफ किया। ऐसे अनुराग भरे उदाहरण सल्तनत में अपवाद हैं। यह भी कहा जाता है कि आचार्य ने सुल्तान के लिए कुछ रहस्यवादी पदों और विजय-मन्त्रों का गान किया था। सुल्तान Jain Education International For Private & Personal Use Only
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