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श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६
जनवरी-जून २००५
मुहम्मद तुगलक और जैन धर्म
__डॉ. निर्मला गुप्ता
मुहम्मद तुगलक का इतिहास विविधताओं से भरा है। जहाँ वह विद्वान,न्यायी, सच्चरित्र, सत्यान्वेषी और जिज्ञासु है, वहीं वह इस्लाम धर्म के प्रति आस्थावान है तथा अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति उदार और सहिष्णु है। जैनियों और जैन- आचार्यों के साथ उसके प्रगाढ़ सम्बन्ध न केवल रोचक हैं वरन् अपवाद स्वरूप भी हैं। मुहम्मद तुगलक का जैन-धर्म के साथ सम्बन्ध मध्यकालीन भारतीय इतिहास का गौरवपूर्ण अध्याय है। यद्यपि फारसी इतिहासकारों ने कहीं भी स्पष्ट रूप से इन घटनाओं का उल्लेख नहीं किया है। इब्नबतूता और इसामी सुल्तान मुहम्मद तुगलक के बारे में लिखते हैं कि वह रात-रात भर योगियों से मिलता और उनसे वाद-विवाद करता था। मुस्लिम-आक्रमण के दौरान जैन-देवालय भी धराशायी हुए। प्रसिद्ध 'कुव्वतुलइस्लाम' मस्जिद के निर्माण में २७ हिन्दू और जैन मन्दिरों के अवशेष प्रयोग में लाये गये थे। समकालीन इतिहासकारों ने कहीं भी जैनियों को जैन कह कर सम्बोधित नहीं किया है। सुल्तानों के द्वारा राजाज्ञा जारी कर जैनियों को और उनके धर्मस्थलों को सुरक्षित करने का प्रयास भी किया है। वे उच्च प्रशासकीय पदों पर भी नियुक्त थे। समर शाह और गुजरात के मन्त्री वस्तुपाल का उल्लेख इस सन्दर्भ में किया जा सकता है। फेरू नामक जैन न केवल प्रसिद्ध व्यापारी था वरन् अलाउद्दीन खलजी के समय वह टकसाल का उच्चाधिकारी भी था। मुबारक-खलजी के बारे में यह कहा जाता है कि जैन आचार्य जिनचन्द्र सूरि के साथ उसके अच्छे सम्बन्ध थे, और १३१८ ई.के लगभग जैन आचार्य और सुल्तान के बीच भेंट होने की सम्भावना प्रगट की जाती है। इसी प्रकार सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने सिंह नामक व्यक्ति को टकसाल का कार्यभार दिया था। ... सुल्तान मुहम्मद तुगलक के राज्यारोहण से दिल्ली सल्तनत के इतिहास में सहिष्णुता का काल आरम्भ होता है। अनेक जैनियों के नाम उपलब्ध हैं, जिनमें राजशेखर, भीम, मंत्री, मनक, महेन्द्र सूरि, भट्टारक सिंहकीर्ति, सोमप्रभ सूरि, सोमतिलक सूरि और जिनप्रभ सूरि ने अपनी विद्वता के बल पर सुल्तान से अच्छे सम्बन्ध बनाये और सुल्तान की कृपा प्राप्त की। समर शाह नामक जैन से सुल्तान * रीडर, इतिहास विभाग, महिला महाविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
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