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श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५
सन्दर्भ : १. तुलना करें, कथासरित्सागर, २, ४, ९०-६. २. वसुदेवहिण्डी, पृ० ११६-१७.
कुवलयमाला, पृ० १०३-६. कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन, डॉ० प्रेम सुमन जैन, पृ० १७९-१८५. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, डॉ० जगदीश चन्द्र जैन, पृ० ८१. उत्तराध्ययन टीका (शान्तिसूरि) -४, पृ० ९५.
कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन, डॉ० प्रेम सुमन जैन, पृ० २६. ८. . उत्तराध्ययन-वृत्ति (सुखबोधा) में प्रतिबुद्ध जीवों की कथा। ९. कथासरित्सागर दशमलम्बक, षष्ठ तरंग। १०. विनोद कथा संग्रह (मल्लधारीराजशेखरसूरि) कथा नं० २६. ११. चौपन्नमहापुरुष- चरियं (शीलंकाचार्य) मुनिचंद कथानक प्रस्तावना पृ० ४. १२. पृथ्वीराजरासो की कथानक रूढ़ियां, पृ० १३२.। १३. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, डॉ० जगदीश चन्द्र जैन, पृ० २८३. १४. उत्तराध्ययनटीका-१८, पृ० २४२,२४७ आदि। १५. महाभारत (शान्तिपर्व), २४७-४९. १६. शिविजातका १७. वसुदेवहिण्डी, पृ० ३३७. | १८. कथासरित्सागर, १, ७, ८८-१०७. ___णायाधम्मकहा, मल्लिअध्ययन।
कुवलयमालाकहा, सुन्दरी की कथा, पृ० २२५ तथा पउमचरियं सन्धि २७-२८. आवश्यकचूर्णि, पृ० २३०, विपाकसूत्र- ९, पृ० ५१-५२, उतराध्ययनटीका ९,
पृ० १४१ आदि। २२. सुगन्धदशमी-कथा, हीरालाल जैन, भूमिका।
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