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रयणचूडरायचरियं में वर्णित अवान्तर कथाएँ एवं उनका मूल्यांकन
वज्रायुद्य की कथा उसके धैर्य से सम्बन्धित है। बाज और कबूतर की कथा अति प्रसिद्ध है। यह कथा महाभारत में आयी है । १५ बौद्ध जातकों में भी यह कथा मिलती है।१६ प्राकृत कथाओं में यही कथा वसुदेवहिण्डी में मिलती है। " कथासरित्सागर में भी इस कथा को संकलित किया गया है। १८
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ईश्वर सेठानी की कथा कटु वचन और दान न देने के भयंकर परिणामों को व्यक्त करने वाली है। इस कथा से ज्ञात होता है कि धार्मिकजनों को दान न देने से, और उनकी निन्दा करने से कई जन्मों में दरिद्रता का दुःख भोगाना पड़ता है । अन्त में, थोड़ा सा भी दान देने से उसका फल मिलता है, इसकी ओर संकेत किया गया है। आहारदान के फल को व्यक्त करने वाली कई कथाएं जैन साहित्य में उपलब्ध हैं।
मनोरमा, विक्रमसेन और मदनसुन्दरी तथा शंखराजा और विष्णुश्री की ये तीनों कथाएं शीलवती नारी के द्वारा अपने शील के उपाय पूर्वक रक्षा करने को प्रकट करती हैं। इन कथाओं में ग्रन्थकार ने नारी के बाहरी सौन्दर्य से आसक्त व्यक्ति को विभन्न थालियों में एक ही भोजन के उदाहरण द्वारा प्रतिबोधित करने की बात कही है। णायाधम्मकहा में राजकुमारी एक सोने की प्रतिमा में भोजन की दुर्गन्ध के द्वारा अपने रूप पर आसक्त राजकुमारों को प्रतिबोधित करती है। १९ रयणचूड में शंखराजा अत्यन्त मोह के कारण अपनी पत्नी के शव को जलाने नहीं देता है। आसक्ति की यह पराकाष्ठा अन्य ग्रन्थों में भी मिलती है।
नागश्री और देवश्री की कथा सौतिया डाह से सम्बन्धित है। सौतिया डाह की कई कथाएं साहित्य में उपलब्ध हैं । २१ दुर्गला चाण्डालिनी और देवमति वणिक पुत्री की कथा सौभाग्य से रहित स्त्रियों की कथा है। चन्द्रलेखा वृद्धा की कथा चोरी करने से दरिद्रता की प्राप्ति के फल को बताने वाली है। अमरदत्त और मित्रानन्द से सम्बन्धित कथाएं लोक कथाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें यशोमति वणिक पुत्री की कथा दुर्वचन कहने से रोग युक्त होने के फल को प्रकट करती है। दुर्वचन अथवा निन्दा के परिणाम वाली कई कथाएं प्राप्त होती हैं । उनमें सुगन्धदशमी कथा प्रमुख है । २२
इस प्रकार रयणचूडरायचरियं की अवान्तर कथाएं एक दृष्टि से स्वतंत्र भी हैं क्योंकि वे अलग-अलग फलों को व्यक्त करती हैं। दूसरी दृष्टि से वे सभी कथाएं एक दूसरे से जुड़ी हुई भी हैं क्योंकि ग्रन्थकार ने इन कथाओं के माध्यम से मूल कथा
प्रमुख पात्रों के जन्म-जन्मान्तरों को स्पष्ट किया है। ये अवान्तर कथाएं कौतूहल बनाये रखने में जितनी सहायक हैं उतनी ही भारतीय कथा - साहित्य का प्रतिनिधित्व करने में भी सहायक हैं। इन कथाओं के अध्ययन से आचार्य नेमिचन्द्रसूरि के सशक्त कथाकार का व्यक्तित्व स्पष्ट रूप से उभरता है।
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