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________________ ७२ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५ के माध्यम से ग्रन्थकार ने जिनेन्द्र के अभिषेक महोत्सव और भक्तजनों द्वारा की गई प्रार्थनाओं का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने एक बात और स्पष्ट की है कि प्रारम्भ में मंदिर में विघ्न उपस्थित करने वाले पात्रों ने अगले जन्म में शान्तिनाथ का मंदिर बनवाया था। अपने मित्रों को प्रतिबोधित करने का प्रसंग इस कथा में आया है जो कि कुवलयमाला के प्रमुख पात्रों के प्रतिबोधन की घटना से मिलता जुलता है। गुरु शिष्य की कथा यद्यपि स्वप्न की असत्यता को सिद्ध करने के लिए कही गयी है किन्तु यह कथा मूल् की कथाओं की कोटि में आती है। ऐसी कई कथाएं प्राचीन साहित्य में उपलब्ध हैं। कथासरित्सागर में नरवाहनदत्त का मनोविनोद करने के लिए उसका मन्त्री गोमुख उसे अनेक मों की कथाएं सनाता है। जिस प्रकार रयणचूड की इस कथा में मूर्ख शिष्य ने गुरु को संकट में फंसा दिया उसी तरह मूर्ख शिष्यों की अन्य कई कथाएं भी मिलती हैं।२० । सत्यप्रतिज्ञ राजा पुरुषोत्तम की कथा से दो बातें ज्ञात होती हैं कि राजा कापालिकों की मंत्र साधना में सहायक होते थे और प्राणों का संकट आने पर भी अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते थे। इस प्रकार की कई कथाएं भारतीय साहित्य में उपलब्ध हैं। चोपन्नमहापुरिष-चरियं में राजा गणधर्म भी इस प्रकार एक कापालिक की मंत्र साधना में सहायक होता है।११ पुरुषोत्तम राजा और कमलश्री की कथा में आ. नेमिचन्द्रसूरि ने एक लोक कथा को प्रस्तुत किया है । राजा स्वप्न में एक अपूर्व सुन्दरी को देखता है जिसके परिचय के सम्बन्ध में उसे कुछ पता नहीं है । फिर भी प्रयत्न पूर्वक वह उसकी प्राप्ति करता है। "स्वप्न में भावी प्रिया का दर्शन'' इस विषय से सम्बन्धित कई कथाएं प्राप्त होती हैं। पृथ्वीराजरासो में पृथ्वीराज का हंसावती और संयोगिता से विवाह उन्हें स्वप्न में देखने के बाद ही होता है।९२ इस कथा के प्रसंग में पुरुषोत्तम राजा कमलश्री को प्राप्त करने में तापसियों का सहयोग लेता है। तापसियों से प्रेम व्यवहार में सहयोग लेने सम्बन्धी कई कथाएं प्राकृत साहित्य में उपलब्ध हैं।१३ इस कथा में पुरुष द्वेषिनी कन्या, चित्रपट्ट दर्शन, औषधि के रूप परिवर्तन आदि अनेक ऐसे तत्त्व हैं जो कई कथाओं में प्राप्त होते हैं। श्रीविजय और नैमित्तिक की कथा भविष्य वाणी के प्रति आस्था और उससे उत्पन्न संकट से राजा की सुरक्षा को प्रकट करने वाली है। मायावी मृग और सतारा की कथा रामायण के प्रसंग की याद दिलाती है। इसमें वैतालिनी विद्या के द्वारा राजा को व्यामोहित कर उसकी पत्नी को हरण करने की घटना है। इस प्रकार की विद्याओं के द्वारा स्त्री के अपहरण करने की कई कथाएं उपलब्ध हैं।१४ कपिल और सत्यभामा की कथा बेमेल विवाह को प्रकट करती है। ब्राह्मण-कन्या और दासी-पुत्र का विवाह समाज में मान्य नहीं था। इस कथा से आसक्ति दृढ़ता भी प्रकट होती है। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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