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रयणचूडरायचरियं में वर्णित अवान्तर कथाएँ एवं उनका मूल्यांकन : ७१
के उपद्रव से यह स्पष्ट है। दूसरी बात यह की यक्ष, राक्षस आदि अमानवीय शक्तियां मानव के लिए सहायक होती हैं। धूमकेतु ने राजकुमारी सुरानंदा की रक्षा की और रत्नचूड के कहने पर नगर को पुन: बसा दिया। तीसरी बात इस कथा से यह फलित होती है कि रत्नचूड को सुरनंदा राजकुमारी की प्राप्ति हो जाती है।
सोमभद्र ब्राह्मण की कथा मुख्यरूप से धनोपार्जन करने की कथा है। प्राकृत साहित्य में धनोपार्जन सम्बन्धी कई कथाएं प्राप्त होती हैं। समाज के अपमान से पीड़ित होकर धन कमाने के लिए निकलना यह एक प्राचीन रूढ़ि है। इस कथा में वेश्या से अपमानित होकर धन कमाने के लिए सोमप्रभ ब्राह्मण निकलता है। इसी तरह वसुदेवहिन्डी में वसन्तलतिका गणिका की मां से अपमानित होकर चारुदत्त धन कमाने के लिये निकलता है। इसी ग्रन्थ में दो इष्ट पत्रों की कथा भी इसी विषय से सम्बन्धित है। कुवलयमाला में सागरदत्त भी समाज से अपमानित होकर धन कमाने के लिए निकल पड़ता है। रत्नचूड की इस अवान्तर कथा में धन कमाने के लिए जिन साधनों को बताया गया है वे प्राचीन साहित्य में बहुत प्रचलित थे।
सुरखंड चोर कथा से दो बातें ज्ञात होती हैं कि उस समय के राजकीय रक्षक कितनी असावधानी रखते थे कि असली चोर के स्थान पर निरपराधी को पकड़ ले जाते थे। दूसरी बात यह कि सोमप्रभ ब्राह्मण का भाग्य उस समय ठीक नहीं था। इसलिए वह निरपराधी होने पर भी पकड़ा गया। असली चोर के बदले में किसी दूसरे को पकड़ने की कथाएं प्राकृत साहित्य में मिलती हैं।६ केशव श्रावक की कथा देवद्रव्य भक्षण करने के दुष्परिणाम को बताने वाली है। ग्रन्थकार ने इस कथा को सोमप्रभ ब्राह्मण की निर्धनता को व्यक्त करने के लिए कहा है। यह सोमप्रभ ब्राह्मण ही पूर्व जन्म में केशव श्रावक था।
शूरतेज और शूरधर्म की कथा सौतेले भाइयों के द्वेष को व्यक्त करती है। इस प्रकार की कई कथाएं प्राप्त होती हैं। ग्रन्थकार ने इस कथा के नायक शूरतेज के गुणों को प्रकट करने के लिए विस्तार दिया है। नायक की उदारता प्रकट करने के लिए उसके द्वारा एक कर्जदार बन्दी पुरुष को अपनी रत्नावली देकर छुड़वाया गया है। रत्नावली देकर कर्ज से मुक्त होने की घटना मृच्छकटिक में भी प्राप्त होती है। इसी कथा में नायक शूरतेज पागल हाथी को वश में करके राजकुमारी पियंगुमंजरी के रूप में पुरस्कार को प्राप्त करता है। हाथी को वश में करने की कथानक रूढ़ि कई कथाओं में प्राप्त होती है। प्राकृत कथाओं में अघट्ठ कुमार की कथा तथा कुवलयचंद्र की कथा. में यही विवरण प्राप्त होता है।
चन्द्रानन और शिवकेतु की कथा में आ.नेमिचन्द्रसूरि धार्मिक कार्यों में विघ्न डालने वाले व्यक्तियों को मिलने वाले दुष्परिणामों से परिचित कराना चाहते हैं। इस कथा
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