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________________ रयणचूडरायचरियं में वर्णित अवान्तर कथाएँ एवं उनका मूल्यांकन : ६९ के लिये चल दिया। पहले मित्रानन्द उसके शिल्पकार सूर्यदेव के पास सोपारक गया! उससे ज्ञात हुआ की उज्जैनी की राजकुमारी के सौंदर्य को देखकरवह सालभंजिका बनायी गयी है। तब रत्नमंजरी से मिलने के लिए मित्रानन्द उज्जैनी पहुंचा। मित्रानन्द ने उज्जैनी में रात्रि के समय धन कमाने के लिए साहसपूर्वक एक मृतक की साधना की। उसके लिए उसे पांच सौ टके प्राप्त हुए। प्रात:काल उस धन से मित्रानन्द आवश्यक वस्त्र आदि खरीद कर नगर की प्रधान गणिका बसन्तसेना के घर गया। अपने संयम और धैर्य से बसन्तसेना को प्रभावित कर उसकी माता को दूती के रूप में मित्रानन्द ने राजकुमारी के पास भेजा कि तुम्हारा प्रेमी पाटलीपुत्र का राजकुमार अमरदत्त तुमसे मिलना चाहता है। ___ रत्नमञ्जरी ने जिज्ञासा के कारण मित्रानन्द को मिलने के लिए चित्रशाला में बुला लिया। मित्रानन्द ने अपने कौशल के द्वारा रत्नमञ्जरी को एक राक्षसी के उपद्रव में फंसा दिया। उस निन्दा से बचने के लिए रत्नमञ्जरी मित्रानन्द के साथ पाटलीपुत्र चलने को तैयार हो गयी। तब राजा को प्रभावित कर मित्रानन्द रत्नमञ्जरी को पाटलीपुत्र ले आया। रत्नमञ्जरी के आ जाने से अमरदत्त और रत्नमञ्जरी का विवाह हो गया तथा अमरदत्त वहां का महाराजा भी बन गया। मित्रानन्द ने उस मुर्दे के श्राप से बचने के लिए देशान्तर का बहुत भ्रमण किया किन्तु अन्त में संयोगवश वह श्राप सत्य हुआ। २७. क्षेत्रपाल अहीर, सत्यश्री और चंडसेन की कथा - अमरदत्त और रत्नमञ्जरी की आसक्ति के सम्बन्ध में उनके पूर्व जन्म की कथा एक मुनि ने कही - क्षेत्रपाल नामक एक अहीर था। उसके सत्यश्री नाम की पत्नी थी तथा चंडसेन नाम का उसका मित्र था। एक बार बगीचे में घूमते हुए एक साधु से क्षेत्रपाल अहीर ने श्रावक व्रतों के पालन का नियम लिया। उनकी पालना फल से वह अमरदत्त के रूप में उत्पन्न हआ तथा सत्यश्री रत्नमञ्जरी हई और चंडसेन मित्रानन्द हआ। क्षेत्रपाल अहीर ने एक बार अपने नौकर को कहा था कि तुम अपने आदमियों से मत मिलो। इसलिए दूसरे अमरदत्त के जन्म में उसे बंधु जनों का वियोग प्राप्त हुआ। सत्यश्री ने अपनी नौकरानी को भोजन करते समय राक्षसी कहा था इसलिए रत्नमञ्जरी के जन्म में उसे राक्षसी की निन्दा प्राप्त हुई और चंडसेन ने किसी भिक्षुक के वस्त्रों को लेकर उन्हें पेड़ पर लटका दिया था ऐसा करने से उसे मित्रानन्द के जन्म में वृक्ष से उल्टा लटकने का फल प्राप्त हुआ। . २८. यशोमति वणिक पुत्री की कथा - एक मुनि के पास सोमवसु नाम का वणिक पुत्र आया और उसने निवेदन किया कि उसकी यशोमति नाम की पुत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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