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________________ रयणचूडरायचरियं में वर्णित अवान्तर कथाएँ एवं उनका मूल्यांकन : ६७ दिया। तब भी देवश्री पति के प्रति अनुकूल व्यवहार करती रही। अचानक ही नागश्री दाह ज्वर की वेदना से मृत्यु को प्राप्त हुई। इसी बीच एक मुनि के द्वारा बंधुधर्म को नागश्री की दुश्चेष्टा का पता चला। तब वह पुन: देवश्री को चाहने लगा और उन दोनों ने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया। २१. दुर्गला चाण्डालिनी की कथा - वह नागश्री मृत्यु के बाद कुत्ते, सियाल आदि तिर्यञ्चो के जन्म में दुःखों को भोगती हुई दुर्गला नाम की चाण्डाल पुत्री हुई। वहाँ भी वह बान्धवों एवं माता-पिता के लएि अनिष्ट थी। दुर्भागिनी होने के कारण .. उसका विवाह नहीं हुआ। माता-पिता ने भी उसे त्याग दिया। वह चाण्डाल पुत्रों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करती किन्तु उसे कोई नहीं चाहता था। एक बार वह बगीचे में गयी हुई थी वहां पर कुछ चाण्डाल पुत्रों ने उसके विवाह का लालच देकर उसका अपमान किया और उसे कुरूप बना कर छोड़ दिया। इस अपमान से दु:खी होकर दुर्गला फांसी लगाकर मृत्यु को प्राप्त हुई। २२. देवमति वणिक पुत्री की कथा - वह दर्गला अगले जन्म में हर्षपर नगर के श्रीबंधु श्रेष्ठी के यहां देवमति नाम की पुत्री हई। किन्तु पूर्व जन्म के कर्मों के फल से उसका विवाह कहीं नहीं हो पाया। तब वह सौभाग्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के मिथ्यात्व वाले उपाय करने लगी। फिर भी उसे उचित वर प्राप्त नहीं हुआ। तब उसके माता-पिता ने दुःखी होकर उसे एक कुरूप भिखारी को व्याह दिया। किन्तु जैसे ही उसने प्रथम मिलन में देवमति का आलिंगन किया तो वह कण्डों की अग्नि की तरह उष्ण तथा इक्षुलता की तरह रूखे स्पर्श वाली प्रतीत हुई। इससे घबराकर वह भिखारी उसे रात में ही छोड़कर भाग गया। तब देवमति ने विचार किया कि सब दुष्कृत कर्मों का फल है। अन्त में उसने एक साध्वी के उपदेश से सौभाग्य कल्पवृक्ष तप की साधना की। उसके परिणाम स्वरूप वह दूसरे जन्म में रत्नचूड की पत्नी राजहंसी हुई। २३. दरिद्र चन्द्रलेखा वृद्धा की कथा - रिष्टपुर नगर में चन्द्रलेखा नाम की एक दरिद्र वृद्धा थी उसने पूर्व जन्म में अपनी भौजाई के लड्डुओं की चोरी की थी इसलिए उसे दरिद्रता प्राप्त हुई। एक बार उसने श्मशान भूमि पर शूली पर चढ़ाये जा रहे सोमप्रभ भट्ट को उसके मांगने पर पानी पिला दिया। राजा ने इस अपराध से उस चन्द्रलेखा वृद्धा को नगर से निकाल दिया। तब वह वृद्धा सोचने लगी की यह सब पूर्व जन्मों के दुष्कृत कर्मों का फल है कि इस जन्म में निरपराधी होने पर भी अपराध की सजा मिलती है। अत: हमेशा अच्छे कार्य ही करने चाहिए इस प्रकार से भावना करती हई उस चन्द्रलेखा को एक सांप ने डस लिया। शुभ भावना से युक्त होने के कारण वह चन्द्रलेखा अगले जन्म में रत्नचूड की पत्नी सुरानन्दा हुई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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