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श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५
का अपहरण कर लिया। मनोरमा को उसने बहत प्रलोभन दिए कि वह उसे स्वीकार कर ले किन्तु मनोरमा अपने शील पर दृढ़ रही तब क्रोधित होकर कामांकुर महन्त ने मनोरमा को कामापाल राजा को सौंप दिया। मनोरमा ने कामापाल राजा के प्रेमअनुरोध को भी ठुकरा दिया और उसे शील की महिमा समझायी। अन्त में मृत्यु को प्राप्त होकर वह रत्नचूड की पत्नी पद्मश्री हुई।
१८. विक्रमसेन राजा और मदनसुन्दरी - मनोरमा ने कामापाल राजा को शील पर दृढ़ रहने वाली मदनसुन्दरी की कथा सुनाई।
उज्जैनी नगरी में विक्रमसेन राजा था। उसने कभी नगर-सेठ की पत्नी मदनसुन्दरी को देखा तथा दासी के द्वारा अपना प्रस्ताव उसके पास भेजा। मदनसुन्दरी ने राजा को समझाने के लिए अपने महल में भोजन के लिए निमंत्रित किया। जब राजा भोजन करने के लिए आया तब मदनसुन्दरी ने उसके आगे रेशमी वस्त्रों से ढकी हुई कई थालियां रख दी और उनमें से भोजन परोसकर राजा को दिया किन्तु सभी थालियों में एक ही पकवान था। तब राजा ने पूछा एक ही पकवान की इतनी थालियों की क्या आवश्यकता थी। मदनसुन्दरी ने कहा जैसे एक ही भोजन अलग-अलग थालियों में होने से आकर्षण उत्पन्न करता है उसी प्रकार युवतियों के शरीर में भी एक ही तरह का मांस, मज्जा, हड्डी आदि अपवित्र पदार्थ है। सभी स्त्रियों का शरीर एक सा है इसलिए हे राजन! आप अपने रनिवास में ही सन्तुष्ट रहें।
१९. शंख राजा और विष्णुश्री की कथा - शंखपुर नगर में शंख राजा रहता था। उसने विष्णुदत्त सार्थवाह की पत्नी विष्णुश्री पर आसक्त होकर उसे अपने अन्त:पुर में प्रवेश करा लिया। एक बार विष्णुश्री शूल की वेदना से मृत्यु को प्राप्त हुई। राजा उसके अत्यन्त मोह के कारण उसके शव को जलाने नहीं दे रहा था। मंत्रियों के द्वारा किसी प्रकार समझा कर वह शव श्मशान ले जाया गया। राजा ने उसके वियोग में भोजन त्याग दिया। तब मंत्री आदि राजा को श्मशान ले गये। वहां उसने विष्णुश्री के सड़े हुए और कीड़े पड़े शरीर को देखा। तब राजा का उसके शरीर से मोह समाप्त हुआ।
२०. नागश्री और देवश्री की कथा - वणसाल नगर में बन्धुधर्म सेठ रहता था। उसकी नागश्री नाम की पत्नी थी किन्तु बहुत समय तक उसे पुत्र न होने के कारण उस बन्धुधर्म ने देवश्री नामक कन्या से दूसरा विवाह कर लिया। वह देवश्री अपने गुणों से अपने पति को बहुत प्रिय हो गयी। पहली पत्नी नागश्री को सौत का सम्मान सहन नहीं हुआ। उसने किसी मंत्र-तंत्र वाले तापसी से एक योग लेकर देवश्री को पानी के साथ पिला दिया। उसके प्रभाव से बन्धुधर्म ने देवश्री को प्रेम करना छोड़
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