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________________ रयणचूडरायचरियं में वर्णित अवान्तर कथाएँ एवं उनका मूल्यांकन वह अपने को धरणीजठ ब्राह्मण का पुत्र कहकर एक अध्यापक के पास विद्या सीखने लगा। उस उपाध्याय ने कपिल को अपनी पुत्री सत्यभामा प्रदान कर दी। किन्तु एक बार सत्यभामा ने कपिल की वास्तविकता को पहचान लिया कि वह दासी का पुत्र है। वह कपिल से अपना पिण्ड छुड़ाने का प्रयत्न करने लगी। किन्तु कपिल ने उसे नहीं छोड़ा। मृत्यु के बाद वह सत्यभामा सुतारा बनी तथा वह कपिल अशनिघोष विद्याधर के रूप में उत्पन्न हुआ। इसलिए पूर्व-जन्म की आसक्ति के कारण अशनिघोष ने सुतारा का अपहरण किया। : ६५ १५. वज्रायुध के धैर्य की परीक्षा - रत्नसंचय नगरी में क्षेमंकर राजा और रत्नमाला रानी के यहां वज्रायुध नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। युवा अवस्था में वज्रायुद्य धर्म में दृढ़ विश्वास रखने वाला हुआ। उसके धैर्य की प्रशंसा देवताओं में भी होने लगी। तब एक देव ने कबूतर और बाज का रूप धारण कर वज्रायुध के धैर्य की परीक्षा ली। वज्रायुध ने अपने शरीर का मांस काटकर और प्राणों की आहुति देकर भी बाज से कबूतर को बचाने का प्रयत्न किया। इससे वह देव प्रसन्न हुआ और अन्त में वज्रायुध की प्रशंसा कर वापस चला गया। इसी वज्रायुध का जीव आगे चलकर शान्तिनाथ जिन के रूप में उत्पन्न हुआ। १६. ईश्वरी सेठानी की कथा - मलयपुर नगर में धनपाल सेठ रहता था। उसके ईश्वरी नाम की पत्नी थी। वह ईश्वरी कड़वा बोलने वाली और दान न करने वाली कंजूस थी। उसके घर जो भी धार्मिक व्यक्ति भिक्षा के लिए आते उनको दुतकार कर भगा देती थी और उन्हें अपशब्द कहती थी। इस प्रकार से धार्मिक जनों की निन्दा करने से वह ईश्वरी जन्म से भयंकर रोग से पीड़ित होकर आर्त ध्यान पूर्वक मृत्यु को प्राप्त हुई। उसके बाद वह रोग वाली कुतिया, सियाली आदि हुई। उसके बाद कंगुसाल गांव में वह एक दरिद्र बनिये के यहां नागश्री नामक पुत्री हुई। उसका विवाह अत्यन्त कुरूप-दुगट्ठे नाम के वणिक पुत्र से हुआ। किन्तु दुर्भागिनी होने के कारण दुगट्ठ ने भी उसे छोड़ दिया। तब वह दूसरों के यहां घरेलू काम करने लगी। एक बार किसी श्रावक के घर में उसने धर्म का महत्त्व सुना और दान की महिमा को जाना। तब से वह अपने को प्राप्त भोजन में से कुछ न कुछ दान करने लगी। एक बार उसने एक साधु को आहार दान दिया। उस दान के फलस्वरूप वह अगले जन्म में राजश्री के रूप में रयणचूड की पत्नी हुई। 3 १७. मनोरमा शीलवती की कथा सुरेशेल नामक नगर में कुलवर्धन नाम का सेठ था। उसकी अत्यन्त सुन्दर मनोरमा नाम की पत्नी थी। एक बार वह कुलवर्धन मनोरमा को साथ लेकर व्यापार के लिए कटाह द्वीप गया। वहां पर कामांकुर नामक महन्त ने एक दिन कुलवर्धन को जुए में हरा कर छल से मनोरमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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