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________________ ६४ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५ प्रात:काल उठने पर उसकी प्राप्ति की चिन्ता में मग्न हो जाता है। राजा का मित्र सुमति मंत्री स्वप्न में देखी गई नगरी का निर्माण करवाता है। उसमें अतिथिशाला खुलवाता है अतिथियों से नगरी की वास्तविकता का ज्ञान कराता है। उसमें पता चलता है कि प्रियंकरा नगरी में सत्यसार राजा है। उसकी पुत्री कमलश्री के सौंदर्य को पुरुषोत्तम राजा ने स्वप्न में देखा था। राजा और मंत्री की योजना के अनुसार पुरुषोत्तम राजा वेश परिवर्तन कर प्रियंकरा नगरी को गया। वहाँ उसने दो तपस्वियों की सहायता से स्त्री रूप में कमलश्री राजकुमारी से मित्रता की। कमलश्री पुरुषद्वेषिणी थी। किन्तु पुरुषोत्तम राजा के द्वारा चित्रपट दर्शन से वह पुरुषोत्तम राजा को प्रेम करने वाली हो गयी। पुरुषोत्तम राजा कमलश्री को पद्मावती नगरी ले आया और उसे सब वृत्तान्त कहकर उससे विवाह कर लिया। अत: कुछ स्वप्न पुरुषार्थ के द्वारा सत्य भी साबित होते हैं। १२. राजा श्रीविजय और नेमित्तिक की कथा - पोदनपुर में राजा श्रीविजय राज किया करता था। एक बार उसने अपने साले अमिततेज को एक नैमित्तिक द्वारा की गयी भविष्य वाणी का वृतान्त इस प्रकार सुनाया - एक बार मैं अपने राज-दरबार में बैठा हुआ था। तभी वहां एक नैमित्तिक आया उसने भविष्यवाणी की कि आज से सातवें दिन पोदनपुर के राजा के ऊपर बिजली गिरेगी और मुझ नैमित्तिक के सिर पर सोने की वृष्टि होगी। नैमित्तिक के इस कथन के परीक्षण के लिए मेरे मंत्री ने वेश्रमण यक्ष की प्रतिमा को आठ दिन के लिए राज्य पर अभिसिक्त कर दिया। सातवें दिन बिजली ने गिर कर उस यक्ष प्रतिमा को नष्ट कर दिया। राजा के बच जाने से नैमित्तिक को स्वर्ण दान किया गया। . १३. मायावी मृग और सुतारा - एक बार श्रीविजय राजा अपनी रानी सुतारा के साथ उद्यान में गया। वहां पर अशनिघोष विद्याधर के द्वारा वैतालिनी विद्या से एक सोने का मृग राजा-रानी के सामने भेजा गया। सुतारा ने उस मृग को लाने के लिए श्रीविजय को प्रेरित किया। जब श्रीविजय उस मृग के पीछे दौड़ा तभी अशनिघोष ने उसका अपहरण कर लिया। सुतारा का रूप धारण कर वैतालिनी विद्या ने भी राजा को व्यामोहित करने का प्रयत्न किया किन्तु दो विद्याधरों की सहायता से राजा को बचा लिया गया और अशनिघोष विद्याधर के पास से सुतारा को भी प्राप्त कर लिया गया। १४. दासी-पुत्र कपिल और सत्यभामा - मगध जनपद के अचल ग्राम में धरणीजठ नामक ब्राह्मण रहता था। उसकी कपिला दासी का पुत्र कपिल था। कपिल ने सुन-सुन कर वेदों को सीख लिया। एक बार वह रत्नपुर नगर को गया। वहाँ पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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