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________________ रयणचूडरायचरियं में वर्णित अवान्तर कथाएँ एवं उनका मूल्यांकन : ६३ उन दोनों कुमारों में से चन्द्रानन ने तो व्रत का अच्छी तरह पालन किया किन्तु शिवकेतु ने व्रत पालन की तरफ ध्यान नहीं दिया। समय पूर्ण होने पर मृत्यु के बाद वे दोनों कुमार सौधर्मकल्प नामक विमान में सूर्यकांत और चन्द्रकांत नामक देव हुए। सीमंधर स्वामी के उपदेश से चन्द्रकांत ने शान्तिनाथ का मंदिर बनवाया और सूर्यकांत को प्रतिबोधित करने के लिए आग्रह किया। वहाँ से च्युत होकर चन्द्रकांत मलयपुर नगर में मृगांक राजा का पुत्र सूरप्रभ हुआ। एक बार उसने स्वप्न में किसी मुनि को अपने सामने बैठा हुआ देखा जो उसे धर्म का उपदेश दे रहा था। इसी प्रकार एक बार सूरप्रभ ने स्वप्न में नरक के भयंकर दु:खों को देखा। स्वप्न में देखे गये इन विषयों के सम्बन्ध में सूरप्रभ सोचने लगा यह सत्य है या असत्य। उसकी इस जिज्ञासा के समाधान के लिए एक मुनि ने (जो कि पूर्व जन्म में सूरप्रभ का मित्र था) सूरप्रभ को कई दृष्टान्त सुनाये। ९. गरु-शिष्य की कथा - किसी गाँव में बहत कमरों से युक्त एक मठ था। उसमें एक शिष्य के साथ एक महन्त रहता था। एक बार उस महन्त ने स्वप्न में किसी कमरे को लड्डुओं से भरा देखा। जागने पर यह बात उसने शिष्य को कही। शिष्य ने स्वप्न के लड्डुओं के आधार पर सारे गाँव को भोजन करने के लिए मठ में बुला लिया। किन्तु महन्त यह भूल गया कि कौन सा कमरा लड्डुओं से भरा था। अत: उसे स्वप्न में फिर से देखने के लिए महन्त सो गया। जब यह बात गाँव वालों को पता चली तो वे सब गुरु-शिष्य की मूर्खता पर बहुत हंसे क्योंकि स्वप्न में देखी गई वस्तु सत्य नहीं होती। १०. सत्य-प्रतिज्ञ राजा पुरुषोत्तम - पद्मावती नगरी में दानी, साहसी और सत्यप्रतिज्ञ पुरुषोत्तम राजा था। एक बार उसने किसी कापालिक को उसकी मन्त्र साधना में सहायता करने का वचन दे दिया। समय आने पर वह पुरुषोत्तम राजा, रात्रि में उस कापालिक के पास श्मशान पहुँचा। कापालिक ने उसे पीपल के वृक्ष पर लटके हुए एक शव को लाने के लिए कहा। राजा जब शव ला रहा था तब उसके राज्य की अधिष्ठित देवी ने उसे सावधान किया कि वह दुष्ट कापालिक है। तुम्हें धोखे से मारकर वह तुम्हारे रक्त से स्वर्ण बनाना चाहता है अत: तुम यहाँ से लौट जाओ। देवी के द्वारा ऐसा कहने पर भी सत्य-प्रतिज्ञ होने के कारण पुरुषोत्तम राजा कापालिक के पास गया और मन्त्र को ही नष्ट कर दिया। राजा उस सिद्ध मन्त्र से स्वर्ण बनाकर अपने महल लौट आया। ११. पुरुषोत्तम राजा और कमलश्री की कथा - पुरुषोत्तम राजा एक बार रात्रि में स्वप्न में किसी अद्वितीय सौंदर्य युक्त राजकुमारी को देखता है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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