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________________ ५४ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५ कंचीमरठ्ठो : यह देशी शब्द करधनी के अर्थ यें प्रयुक्त है। विद्वानों ने इसकी संस्कृतच्छाया काच्याडम्बरो की है। कर्परमञ्जरी में विदूषक यह बतला रहा है कि कैसी युवती के शरीर पर कौन सा आभूषण अच्छा लगता है। उसी क्रम में वह कहता है किचक्काआरे रमणफलए को वि कंचीमरट्ठो। अर्थात् गोलाकार जघन प्रदेश/ नितम्ब स्थल पर अनिर्वचनीय शोभा वाली करधनी अच्छी लगती है। २/२३ यहाँ मैंने राजशेखरकृत कर्पूरमञ्जरी से लगभग दो दर्जन से अधिक देशी शब्दों का चयनकर उन पर संक्षिप्त प्रकाश डालने का प्रयास किया है। वैसे कर्पूरमञ्जरी में और भी अन्य अनेक देशी शब्दों का प्रयोग हुआ है, जिनकी सारिणी इस प्रकार है। देशी शब्द सस्कृतच्छाया कर्पूरमञ्जरी | देशीनाममाला का सन्दर्भ अर्थ वक्ता ओलग्गविआ दासी बनकर विचक्षणा २/२८ पृष्ठ १४९ बोलेइ अतिवाहयति बिताती है विचक्षणा २/२९ पृष्ठ १४९ २/३३ पृष्ठ १५० पब्भारपीडि प्राग्भार . ६/६ अत्यन्त भार से पीड़ित पीडितम् विदूषक विदूषक विदूषक हक्कारइ आह्वयति बुलाता है २/३३ पृष्ठ १५० पुक्कारइ चक्कलं वर्तुलम् गोलाकार विदूषक ३/२० २/३४ पृष्ठ १५० हिंदोलण हिन्दोलन हिंडोला विदूषक ८/७६ २/३४ पृष्ठ १५० हक्कारिऊण आकार्य बुलाकर विदूषक २/३६ पृष्ठ १५० भसलकुलाणं भ्रमरकुलानाम् भ्रमरसमूहों का राजा ६/१०१ २/४४ पृष्ठ १५३ कंदोटेण इन्दीवरेण नीलकमल से राजा २/९ ३/३ पृष्ठ १५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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