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________________ ५२ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १- ६ / जनवरी - जून २००५ तुमं लह जं फगुग्णसमये सोहंजणो जणादो लहेदि - अर्थात् तुम्हें मुझ महाब्राह्मण के वचन से वह प्राप्त हो, जो फाल्गुन मास में सहजन को लोगों से प्राप्त होता है। वस्तुतः फाल्गुन मास में लोग सहजन वृक्ष की डालों को तोड़ डालते हैं |१/१९ गलिबइल्लो : यह देशी शब्द गरयार बैल के लिये प्रयुक्त हुआ है। कर्पूरमञ्जरी में विदूषक कहता है कि- ता यह महबंभणस्स भणिदेण तं तुमं लह जं पामराहिंतो गलिबइल्लो लहेदि । अर्थात् मुझ ब्राह्मण के वचन से तुम्हें वह प्राप्त हो, जो पामरों द्वारा गरयार बैल को प्राप्त होता है। वस्तुतः गरयार बैल की पिटाई होती है अथवा उसकी नाक छेद दी जाती है। १/१९ घल्लिस्सं : यह देशी शब्द फेंकने के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। बुन्देलखण्डी भाषा में कहते हैं कि अभी एक थपाड़ा घलेगा। कर्पूरमञ्जरी में विचक्षणा विदूषक को लक्ष्य करके कहती है कि - उत्तरासाठा पुरस्सर णक्खत्त - णामधेअं अंगजुअलं उप्पाडिअ घलिस्सं । अर्थात् उत्तराषाढ के पश्चात् आनेवाले नक्षत्र (श्रवण) के नाम पर जो दोनों अङ्ग अर्थात् कान हैं उन्हें उखाड़ फेकूंगी । टप्परकण्णा : यह देशी शब्द सूप के समान बड़े कानवाली के अर्थ में प्रयुक्त है | बुन्देलखण्डी भाषा में भी टपरा शब्द का प्रयोग बड़े के अर्थ में होता है - जैसे टपरा जैसे कान । कर्पूरमञ्जरी में विदूषक कपिंजल विचक्षणा से नाराज होकर चला जाता है और नेपथ्य से कहता है कि एसा वा दुट्ठदासी लम्बकुच्चं पडिसीसअं देइ मह ठाणे कीरदु । अर्थात् इसी दुष्ट दासी को लम्बी डाड़ी, कनटोप और मुखौटे से सजाकर मेरे स्थान पर रख लें। १/१९ कडिल्लं : यह देशी शब्द कटिवस्त्र के लिये प्रयुक्त है। विद्वानों ने कडिल्लं की संस्कृतच्छाया कटिवस्त्रम् की है। कर्पूरमञ्जरी में भैरवानन्द के द्वारा प्रस्तुत सद्य: स्नाता नायिका को देखकर राजा चन्द्रपाल ने नायिका के वर्णन प्रसङ्ग में 'कडिल्ल' शब्द का प्रयोग किया है । १/२६ चंगस्स : यह देशी शब्द सुन्दर के अर्थ में प्रयक्त हुआ है। विद्वानों ने इसकी संस्कृतच्छाया सुन्दरस्य की है। बुन्देलखण्डी भाषा में भी चंग शब्द का प्रयोग स्वस्थ / सुन्दर के अर्थ में होता है । कर्पूरमञ्जरी में राजा चन्द्रपाल नायिका की प्रशंसा करते हुये कहता है कि- णिसग्गचंगस्स ण माणुसस्स सोहा समुम्मीलदि भूषणेहिं । अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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