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प्राकृत भाषा और राजशेखरकृत कर्पूरमञ्जरी में देशी शब्द : ४९
महाकवि राजशेखर ने अपनी कर्पूरमञ्जरी में ऐसे देशी शब्दों का विपुल मात्रा में प्रयोग कर प्राकृत भाषा को उस उच्च शिखर पर प्रतिष्ठित किया है, जिसकी वह अधिकारिणी है और भविष्य में रहेगी।
महाकवि राजशेखर यद्यपि एक बहुश्रुत और प्रतिष्ठित संस्कृतज्ञ थे, किन्तु जमीन से जुड़े होने के कारण वे जन-जन के हृदय सम्राट भी थे। अत: उन्होंने उसी जनभाषा में कर्पूरमञ्जरी की रचना करके उभयभाषा चक्रवर्ती जैसे गरिमामय पद को स्वयं प्राप्त कर लिया।
कर्पूरमञ्जरी एक सट्टक है। यह प्राकृत भाषा में लिखित नाट्य काव्य है। इसकी रचना में महाकवि राजशेखर ने पूर्वोक्त त्रिस्तरीय प्राकृत का प्रयोग किया है। इस त्रिस्तरीय प्राकृत के अन्तर्गत उन्होंने देशी शब्दों का अनेक स्थलों पर प्रचुर मात्रा में प्रयोग करके एक ऐसी मन्दाकिनी प्रवाहित की है, जो जन सामान्य को आनन्दित करने में सम्यक्तया समर्थ है।
कर्पूरमञ्जरी में समागत कतिपय देशी शब्दों की छटा यहाँ द्रष्टव्य है - छइल्लप्पिया :
महाकवि राजशेखर ने कर्पूरमञ्जरी के 'भदं भोदु ...' आदि मङ्गलाचरण में 'छइल्लप्पिया' शब्द का प्रयोग किया है, जिसकी संस्कृतच्छाया विद्वानों ने 'विदग्धप्रिय'
की है। 'छइल्ल' शब्द संस्कृत व्याकरण से निष्पन्न नहीं होता है, अत: यह शब्द विशुद्ध रूप से देशी शब्द है। आज भी किसी चतुर व्यक्ति के सन्दर्भ में छइल्ल के विकसित रूप छैला शब्द का प्रयोग किया जाता है। १/१, १/५ .
संघाडी:
यह शब्द युगल के अर्थ में प्रयुक्त देशी शब्द है। इसका अर्थ समागम भी होता है। कर्पूरमञ्जरी के प्रारम्भ में सूत्रधार कहता है कि शिव और पार्वती का समागम आप लोगों को सुख प्रदान करे। १/३
हलबोलो :
यह शब्द देशी है और कोलाहल के अर्थ में प्रयुक्त होता है। शोर-शराबा होने पर बुन्देलखण्डी भाषा में कहा जाता है कि - हल्ला हो रहा है। किसी कार्य का विरोध करने के लिये लोगों द्वारा समूह बनाकर आज भी हल्ला बोला जाता है। राजशेखर ने कर्पूरमञ्जरी में नान्दीपाठ के अनन्तर वाद्यों की सफाई के क्रम में होने वाले शोरगुल के लिये हलबोलो शब्द का प्रयोग किया है। १/४
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