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प्राकृत भाषा और राजशेखरकृत कर्पूरमञ्जरी में देशी शब्द : ४७ हाँ! इतना अवश्य है कि प्राकृत भाषा का व्याकरण के माध्यम से नियमन करने वाले संस्कृतज्ञ प्राकृत वैयाकरणों ने इन शब्दों की सिद्धि आदेश मानकर की है। इस समस्या के समाधान के लिये इनके पास आदेश मानकर प्राकृत-शब्द रूप-सिद्ध करने के अतिरिक्त कोई अन्य युक्ति थी भी नहीं।
___ वस्तुत: प्राकृत भाषा के शब्द भण्डार में जिन तीन प्रकारों का प्रारम्भ में उल्लेख किया गया है, वे प्राकृत भाषा में त्रिस्तरीय प्राकृतों के प्रतिनिधि हैं।
भाषा वैज्ञानिकों के अनुसार छान्दस् भाषा और प्रथम स्तरीय प्राकृत भाषा में कुछ शब्द समान रूप से पाये जाते हैं। जिससे यह बात एकदम स्पष्ट है कि छान्दस् भाषा और प्रथम स्तरीय प्राकृत भाषा का स्रोत इन दोनों से पूर्ववर्ती कोई अन्य ही जनबोली है, जिससे दोनों भाषाओं में समान रूप से शब्द संगृहीत हुए हैं। डॉ० रिचर्ड पिशल ने ऐसे अनेक शब्दों का उल्लेख किया है। (प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पैरा ६, पृष्ठ ८-९)
द्वितीय स्तरीय प्राकृत भाषा के शब्द तद्भव-शब्दसमूह के अन्तर्गत स्वीकृत हैं। क्योंकि इन शब्दों का अधिकांश प्रयोग संस्कृत नाटकों में हुआ है। संस्कृत नाटक वस्तुतः संस्कृतज्ञों द्वारा संस्कृत भाषा में निबद्ध नाटक हैं और उनके लेखक विशुद्ध रूप से संस्कृत के प्रति गहरी निष्ठा रखने वाले हैं। वे संस्कृत को श्रेष्ठ किंवा आभिजात्य वर्ग विशेष की भाषा एवं प्राकृत भाषा को निम्न वर्ग की भाषा कहकर संस्कृत की तुलना में प्राकृत को हीन दृष्टि से देखते हैं। किन्तु उनकी मजबूरी यह . है कि संस्कृत नाटकों का यह नियम है कि उसके स्त्रीपात्र एवं निम्नवर्ग के पुरुषपात्र भी प्राकृतभाषा में ही बोलेंगे। अत: संस्कृत नाटकों के लेखन के समय स्त्रीपात्रों एवं निम्न पुरुषपात्रों के संवाद भी पहले संस्कृत में सोचे गये, तदनु उन पात्रों के संवादों की संस्कृत भाषा को गंदला करके/विकृत करके उनका प्राकृत रूप तैयार किया गया। इसलिये इस द्वितीय स्तरीय प्राकृत का जो स्वरूप बना वह तद्रव अर्थात् संस्कृत से उद्भभूत हुआ और ये शब्द संस्कृत से प्राकृत में कैसे परिवर्तित हो गये, इसे प्राकृत व्याकरण के माध्यम से बतलाया गया है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि लक्ष्य ग्रन्थों के आधार पर ही लक्षण-ग्रन्थों की रचना होती है, अत: भविष्य में जो विद्वान् संस्कृत नाटकों की रचना करें, वे अपने स्त्रीपात्रों एवं निम्न पुरुषपात्रों के मुख से बोले जाने वाले प्राकृत भाषागत संवादों को तैयार करने के लिये इसी पद्धति को अपनायें। _आचार्य हेमचन्द्र आदि संस्कृतज्ञ वैयाकरणों ने 'प्राकृत' शब्द की व्युत्पत्ति करते हुये जो यह लिखा है कि- प्रकृति: संस्कृतं, तत्र भवं तत आगतं वा प्राकृतम् (हेमचन्द्र कृत प्राकृत-व्याकरण), प्रकृति: संस्कृतं तत्र भवं प्राकृतमुच्यते (प्राकृतसर्वस्व कार), प्रकृति: संस्कृतं तत्र भवत्वात् प्राकृतं स्मृतम् (प्राकृत-चन्द्रिकाकार), प्रकृते:
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