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कर्म-सिद्धान्त एवं वस्तुस्वातन्त्र्य : ३९
कलशरूप पर्याय व्याप्य है तथा उस पर्याय में मिट्टी व्यापक है कुम्हार नहीं। अत: कलश कर्म तथा मिट्टी उसकी कर्ता है, कुम्हार उसका कर्ता नहीं है क्योंकि मिट्टी की
सर्व अवस्थाओं में स्वयं मिट्टी व्याप्त होती है। ३७. (i) समयसार, गाथा ८०-८१-८२- की आत्मख्याति टीका।
(ii) पंचाध्यायी (पूर्वार्द्ध) श्लोक - ५७५-५७६ समयसार (तात्पर्यवृत्ति टीका) : आ० जयसेन, गाथा ८०-८१ की टीका, सोलापुर;
२०००. ३९. समयसार, गाथा ८८. ४०. वही, गाथा ८५-८६. ४१. (i) योगसार : आ. अमितगति, अधिकार, २, गाथा ३०, वाराणसी; वी०नि०सं०
- २४९५. (ii) पंचाध्यायी (पूर्वार्द्ध) श्लोक ५७४. ४२. समयसार, गाथा १०५-१०८. ४३. पद्मपुराण : रविषेण, सर्ग ४, श्लोक ३७.
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