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________________ कर्म - सिद्धान्त एवं वस्तुस्वातन्त्र्य उत्पाद-व्यय रूप परिणमन, उसमें अन्तर्निहित सामान्य व विशेष गुणों की सत्ता उसके पूर्ण, स्वसहाय स्वतन्त्र व निरपेक्ष स्वभाव की उद्घोषक है। (ग) द्रव्य - गुण व पर्याय की स्वतन्त्रता जैन दर्शन वस्तु की स्वतन्त्रता का जो प्रतिपादन करता है वह उसकी अद्वितीय विशिष्टता का द्योतक है। वह द्रव्य, उसके सहभावी गुणों व उसकी प्रतिसमय परिणमित हो रही क्रमवर्ती पर्यायों की स्वतन्त्र सत्ता का निरूपण कर वस्तु स्वाधीन, स्वसहाय, स्वसंचालित व्यवस्था की उद्घोषणा करता है जहाँ सर्वशक्तिमान परम सत्ता का हस्तक्षेप तो दूर की बात, दो द्रव्यों में भी परस्पर कर्त्तव्य की अस्वीकार्यता है । (i) द्रव्य की स्वतन्त्रता आचार्य कुन्दकुन्द ने 'पंचास्तिकाय' में द्रव्यों की स्वतन्त्रता का सुन्दर चित्रण किया है- “छहों द्रव्य एक-दूसरे में प्रवेश करते हैं, एक दूसरे को अवकाश देते हैं, परस्पर क्षीरनीरवत् मिल जाते हैं तथापि अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते। १३१ ३१ जैन दर्शन की यह विचित्र व अलौकिक प्ररूपणा है कि आकाश के एक प्रदेश में आकाश सहित छहों द्रव्यों की सत्ता एक साथ होते हुए भी सभी द्रव्यों का स्वतन्त्र अस्तित्व है और उनका परिणमन भी पूर्णतः स्वतन्त्र है। (ii) गुणों की स्वतन्त्रता द्रव्य के सहभू, अनन्य व उसके प्रदेशों व अवस्थाओं में व्याप्त अनन्त गुणों की सत्ता पूर्णतः स्वतन्त्र है। वे एक-दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। जैसेज्ञानगुण का कार्य जानना है, चेतनागुण का कार्य चेतनपना है किन्तु ज्ञानगुण चेतनागुण का कार्य नहीं करता है, वैसे ही चेतनागुण भी ज्ञानगुण का कार्य नहीं करता । कहा भी गया है- “जीव में जो दर्शन नाम का एक गुण है वह न ज्ञानगुण है, न सुख है, न चारित्र अथवा न कोई अन्य गुण ही हो सकता है। किन्तु वह दर्शनगुण ही है । " कोई भी गुण किसी भी गुण का अन्तर्भावी नहीं है, आधार नहीं है, आधेय नहीं है, कारण और कार्य भी नहीं है, किन्तु अपनी-अपनी शक्ति को धारण करने की अपेक्षा सभी गुण अपने-अपने स्वरूप में स्थित हैं। इसलिए यद्यपि वे नानारूप व अनेक हैं तथापि निश्चयपूर्वक वे सब गुण परस्पर में एक ही सत् के साथ अन्वय रूप में रहते हैं । ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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