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३० : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६ / जनवरी- उ
- जून २००५
(५) आकाशद्रव्य - जो जीवादिक द्रव्यों को रहने के लिए अवकाश देता है, वह द्रव्य है। अवगाहन हेतुत्व आकाश द्रव्य का विशेष गुण है । २५
(६) कालद्रव्य- अपनी-अपनी अवस्था रूप से स्वयं परिणमते हुए जीवादिक द्रव्यों के परिणमन में जो निमित्त हो, वह काल द्रव्य है, जैसे- कुम्हार के घूमने में लोहे की कीली । वर्तना हेतुत्व कालद्रव्य का विशेष गुण है | २६
चाक को
सामान्य गुण- सामान्य गुण वह हैं जो सभी द्रव्यों में विशेषता रहित वर्तन करते हैं । २७ प्रमुख गुण निम्नांकित हैं- २८
(१) अस्तित्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य का कभी नाश नहीं होता है और द्रव्य किसी से उत्पन्न नहीं होता है, उस शक्ति को अस्तित्व गुण कहते हैं। (२) वस्तुत्व गुण- जिस शक्ति के कारण द्रव्य में अर्थ - क्रियाकारित्व होता है अर्थात् अपनी-अपनी प्रयोजनभूत क्रिया होती है उस शक्ति को वस्तुत्व गुण कहते हैं।
(३) द्रव्यत्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य की अवस्थाओं में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, उसे द्रव्यत्व गुण कहते हैं।
(४) प्रमेयत्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य किसी न किसी ज्ञान का विषय हो उसे प्रमेयत्व गुण कहते हैं ।
(५) प्रदेशत्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य का कोई न कोई आकार अवश्य होता है उस शक्ति को प्रदेशत्व गुण कहते हैं।
(६) अगुरुलघुत्व गुण - जिस शक्ति के कारण द्रव्य में द्रव्यपना कायम रहता है अर्थात् (१) एक द्रव्य दूसरे द्रव्य रूप नहीं होता है । (२) एक गुण दूसरे गुण रूप नहीं होता है और (३) द्रव्य में रहने वाले अनन्तगुण बिखरकर अलगअलग नहीं हो जाते हैं, उस शक्ति को अगुरुलघुत्व गुण कहते हैं।
(ख) पर्याय का स्वरूप
गुणों के परिणमन को पर्याय कहा जाता है। आलाप - पद्धति में इसका व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ बतलाते हुए कहा गया है - "जो स्वभाव - - विभाव रूप से गमन
करती है अर्थात् परिणमन करती है, वह पर्याय है।' । २९ परिणमन गुणों की अवस्था है अर्थात् गुणों की प्रतिसमय होने वाली अवस्था का नाम पर्याय है । ३०
उपरोक्त सम्पूर्ण विवेचन से यह बात स्पष्टतः परिलक्षित होती है कि प्रत्येक वस्तु अपने स्वभाव से परिपूर्ण है। वस्तु का सत् अस्तित्व, उसके गुण- पर्यायों का
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