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________________ २२ : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६ / जनवरी - जून २००५ समस्त अवयवों से परिपूर्ण और समस्त लक्षणों से लक्षित निर्मल दर्पण में पड़े हुए प्रतिबिम्ब के समान प्रभाव वाले परमात्मा का चिन्तवन रूपातीत ध्यान है। १.४ रूपातीत या रूपरहित ध्यान का लक्षण योगशास्त्र में इस प्रकार मिलता है 1 अमूर्त्तस्य चिदानन्दरूपस्य परमात्मनः । निरंजनस्य सिद्धस्य ध्यानं स्याद् रूपवर्जितम् ।। १५ अर्थात् अमूर्त- वर्ण, गन्ध स्पर्शादि से रहित, केवलज्ञान दर्शन चारित्रादि गुणों से विभूषित, निराकार, चिदानन्द स्वरूप निरंजन सिद्ध का ध्यान रूपातीत ध्यान कहलाता है। . १.५ गणाधिपति श्री तुलसी ने 'मनोनुशासनम्' में रूपातीत ध्यान को पारिभाषित किया है - सर्वमलापगतज्योतिर्मयात्मालम्बि रूपातीतम् । १६ अर्थात् सर्वमलातीत ज्योतिर्मय आत्मा के अमूर्त स्वरूप का आलम्बन लेने को रूपातीत ध्यान कहा जाता है। २. रूपातीत ध्यान सालम्बन अथवा निरालम्बन ध्यान सालम्बन ध्यान है या निरालम्बन इस विषय में मतभिन्नता है। सालम्बन मानने वाले आचार्यों का अभिमत है कि रूपातीत ध्यान में अरूपी शुद्ध निजात्मा का आलम्बन लिया जाता है इसलिए इसे सालम्बन ध्यान कहते हैं । अरूपी आत्मा का इन्द्रिय साक्षात्कार नहीं हो पाता है। शब्दिक ज्ञान के द्वारा उसके स्वरूप को निश्चित कर उस पर मन को एकाग्र किया जाता है। रूपातीत ध्यान शाब्दिक भावना के माध्यम से होता है। इसमें आत्म विषयक विचार का चिन्तन रहता है। निरालम्बन ध्यान पूर्णतया विचार - शून्यता की स्थिति है। सालम्बन ध्यान के माध्यम से दीर्घकाल तक अभ्यास करते-करते साधक विचार - शून्यता की स्थिति में चला जाता है । w - रूपातात कुछ साधक5- विद्वानों का विचार है कि रूपातीत ध्यान निरालम्ब ध्यान के अन्तर्गत आता है, क्योंकि इसमें न तो किसी प्रकार का मन्त्र जप होता है आर न ही किसी चीज का आलम्बन । रूपातीत ध्यान का आलम्बन अमूर्त आत्मा का चिदानन्द स्वरूप होता है, इसका साधक आत्मा के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सुख आदि गुणों में अपने चित्त को स्थिर कर लेता है । पिण्डस्थ, पदस्थ और रूपस्थ ये तीनों ध्यान सालम्बन ध्यान के अन्तर्गत आते हैं, क्योंकि इन ध्यानों में आत्मा से भिन्न वस्तुओं, यथा- मन्त्र, जाप आदि का आलम्बन लिया जाता है। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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