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________________ रूपस्थ एवं रूपातीत ध्यान 1: २१ करते हैं। योगी उस सर्वज्ञ देव परम ज्योति को आलम्बन करके गुण ग्रामों में रंजायमान होता हुआ मन में विक्षेप रहित होकर, उसी स्वरूप को प्राप्त होता है। इस प्रकार सालम्बन ध्यान का तृतीय भेद रूपस्थ ध्यान अर्हत् चिन्तन विषयक है तथा तत्स्वरूप की उपलब्धि उसका लक्ष्य है। साधक अर्हत् का ध्यान करते-करते अर्हत् स्वरूप को उपलब्ध कर लेता है, मुक्ति श्री को वरण लेता है। २. रूपातीत ध्यान १. स्वरूप - जिस ध्यान का आलम्बन रूप, वर्णादि से रहित हो उसको रूपातीत ध्यान कहते हैं। रूप + अतीत = रूपातीत अर्थात् रूप से रहित, मूर्तिमान् पदार्थ से रहित, पुद्गल पदार्थ से रहित । तात्पर्यत: अमूर्त आत्मा का, चिदानन्द स्वरूप आत्मा का ध्यान रूपातीत ध्यान कहलाता है। इसकी अनेक परिभाषाएँ मिलती हैं - १.१ वसुदेवनन्दिश्रावकाचार में रूपातीत ध्यान का स्वरूप निर्दिष्ट हैवण्णरसगंध फासेहिं वज्जिओ णाणदंसणरूवो । जं झाइज्जइ एवं तं झाणं रूवरियं त्ति । । १२ अर्थात् वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श से रहित केवल ज्ञान दर्शन स्वरूप शुद्ध आत्मा का ध्यान किया जाता है वह रूपातीत ध्यान है । १.२ द्रव्यसंग्रहकार ने रूपातीत ध्यान को 'परम ध्यान' कहा है जिसमें अपनी आत्मा द्वारा अपनी ही आत्मा में रमण करने की बात कही गयी है मा चिट्ठह मा जंपह मा चिन्तह किं वि जेण होइ थिरो । अप्पा अप्पम्मि रओ इणमेव परं हवे ज्झाणं । । १३ अर्थात् हे ज्ञानीजनो! तुम कुछ भी चेष्टा मत करो ( काय का व्यापार मत करो ) कुछ भी मत बोलो और कुछ भी मत विचारो जिससे कि आत्मा में स्थिर हो जाओ, क्योंकि आत्मा में आत्मा की तल्लीनता ही परमध्यान है। इस गाथा में रूपातीत ध्यान के साधनों का भी निर्देश किया गया है। १. ३ ज्ञानार्णव में निर्दिष्ट है - चिदानन्दमयं शुद्धममूर्त्त परमाक्षरम् । स्मरेद्यत्रात्मनात्मानं तद्रूपातीतमिष्यते । । सर्वावयवसम्पूर्ण सर्वलक्षण लक्षितम् । विशुद्धादर्शसंक्रान्तं प्रतिबिम्बसमप्रभम् । । १४ अर्थात् जिस ध्यान में चिदानन्द स्वरूप, शुद्ध, अमूर्त, अजन्मा एवं परमाक्षर स्वरूप आत्मा का स्मरण, चिन्तवन किया जाता है वह रूपातीत ध्यान कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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