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________________ २० : श्रमण, वर्ष ५६, अंक १-६/जनवरी-जून २००५ २. अनन्त चतुष्टय सम्पन्न - धातिया कर्मों के विनाश से उत्पन्न अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख और अनन्तवीर्य रूप अनन्त चतुष्टय के धारक भगवान जिनेन्द्र ध्येय हैं। ३. सुहदेहत्थो- निश्चयनय से शरीर रहित है तो भी व्यवहारनय की अपेक्षा से सात धातुओं से रहित हजारों सूर्यों के समान देदीप्यमान परम औदारिक शरीर अर्थात् शुभदेह को धारण करता है, वह अर्हत् ध्येय है। ४. सुद्धो- क्षुधा, तृषा, भय, देश, राग, मोह, चिन्ता, जरा, रोग, मरण, स्वेद, खेद, मद, रति, विस्मय, जन्म, निद्रा और विषाद आदि अठारह दोषों से जो रहित है, वह शुद्ध है, वैसी शुद्ध आत्मा ध्येय है। ___५. अरिहो - सम्पूर्ण कर्मों से रहित जो पूज्य है, वही ध्येय है। महापुराण और ज्ञानार्णव में भी ध्येय का विवरण मिलता है। महापुरण (२१.१२०-१३०) के अनुसार जो घातिया कर्मों को नष्ट कर स्नातक अवस्था को प्राप्त हुए हैं, तेजोमय औदारिक शरीर को धारण किए हुए हैं, वैसे अर्हत्, सिद्ध, ज्ञानी, सर्वज्ञ ध्यान करने योग्य हैं। जो अर्हत्, सिद्ध, विश्वदर्शी, विश्वज्ञ, अनन्त चतुष्टय का धारक, समवसरण में विराजमान तथा आठ प्रातिहार्यों से युक्त हैं, वे ध्येय हैं। सुखमय, निर्भय, निस्पृह, निर्बाध, निराकुल, निरपेक्ष, नीरोग, नित्य, कर्म रहित, नव केवललब्धि युक्त परमेष्ठी, परम ज्योति, अक्षर स्वरूप अर्हत् भगवान ध्येय हैं। ज्ञानार्णवकार ने लिखा है - शुद्ध ध्यान विशीर्णकर्मकवचो देवश्च मुक्तेर्वरः। सर्वज्ञः सकलः शिवः स भगवान् सिद्धः परो निष्कलः। ११ अर्थात् शुद्धध्यान से कर्मरूपी आवरण को विनष्ट करने वाले, सर्वज्ञ, समस्त कल्याण के पूरक अर्हत् भगवान ध्येय हैं। रूपस्थ ध्यान का फल - अर्हत् के गुणों में प्रतिष्ठा ही रूपस्थ ध्यान का फल होता है। सिद्ध, सर्वज्ञ अर्हत् का चिन्तन करते-करते साधक तत्स्वरूप हो जाता है। ज्ञानार्णव में उल्लिखित है - यमाराध्यशिवं प्राप्ता योगिनो जन्म निस्पृहाः। यं स्मरन्त्यनिशं भव्याः शिवश्रीसंगमोत्सुकः।। तदालम्ब्य परं ज्योतिस्तद् गुणग्रामरञ्जितः। अविक्षिप्तमनायोगी तत्स्वरूपमुपाश्नुते।। .. अर्थात् जिन सर्वज्ञ देव का आराधन करके संसार से निस्पृह मुनिगण मोक्ष को प्राप्त हुए हैं तथा मोक्ष लक्ष्मी के संगम में उत्सुक भव्यजीव जिसका निरन्तर ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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