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________________ रूपस्थ एवं रूपातीत ध्यान : १९ ५. घणघाइकम्ममहणो अइसयवर पाडिहेरसंजुत्तो झाएह धवलवण्णो अरहंतो समवसरणत्थो।। अर्थात् घातिया कर्मों से रहित, अतिशय और प्रतिहार्यों से युक्त समवसरण में स्थित धवलवर्ण वाले अरिहन्त का ध्यान रूपस्थ ध्यान है। ६. संस्थानावलम्बि रूपस्थम् अर्थात् जिसमें आकृति (संस्थान) का अवलम्बन लिया जाता है, वह रूपस्थ ध्यान है। तात्पर्य है कि समवसरण में स्थित तीर्थंकर, अरिहन्त की आकृति का एकाग्र मन से चिन्तन करना रूपस्थ ध्यान कहलाता है। रूपस्थ ध्यान के भेद कार्तिकेयानुप्रेक्षा के टीकाकार शुभचन्द्र ने एक प्राकृत गाथा के द्वारा रूपस्थ ध्यान के दो भेदों का निर्देश किया है रूवं झाणं दुविहं सगयं तह परगयं च जं भणियं। अर्थात् रूपस्थ ध्यान दो प्रकार का होता है- स्वगत और परगत। आत्मा का ध्यान करना स्वगत रूपस्थ ध्यान है और अर्हन्त का ध्यान करना परगत रूपस्थ ध्यान है। रूपस्थ ध्यान का ध्येय - अर्हन्त पद की महिमा से युक्त, समस्त अतिशयों से पूर्ण, दिव्य लक्षणों से शोभित, अनन्त महिमा के आधार, संयोग केवली परमेश्वर, सप्तधातुओं से रहित, मोक्ष रूपी लक्ष्मी के कटाक्ष के लक्ष्य, सब प्राणियों के हित, शीलरूपी पर्वत के शिखर और देव, इन्द्र, चन्द्र, सूर्य आदि की सभा के मध्य में स्थित स्वयंभू अरिहन्त रूपस्थ ध्यान के ध्येय हैं अर्थात् वे ही चिन्त्य हैं। घातिया कर्मों से रहित धवल वर्ण अरिहन्त ही चिन्त्य हैं। द्रव्यसंग्रहकार ने लिखा है__णट्ठचदुघइकम्मो दंसणसुहणाण वीरियमइओ। सुहदेहत्थो अप्पा सुद्धो अरिहो विचिंतिज्जो।१० अर्थात् चार घातिया कर्मों को नष्ट करने वाला अनन्त दर्शन, सुख, ज्ञान और वीर्य का धारक, उत्तम देह में विराजमान और शुद्ध जो आत्मा है, वह अरिहन्त है, उसका ध्यान करना चाहिए अर्थात् ध्येय के लिए निम्नलिखित का होना आवश्यक है। १. चारघातिया कर्मों का विनाशक - रूपस्थ ध्यान का ध्येय वही हो सकता है, जिसने अपने चारों घातिया कर्मों का विनाश कर दिया है। निश्चय रत्नत्रय स्वरूप शुद्धोपयोग ध्यान के द्वारा घातिया कर्मों में प्रधान मोहनीय के विनाश के उपरान्त ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय नामधारी कर्मों को एक ही समय में जिसने विनष्ट कर दिया है, वह ध्येय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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