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________________ अर्थ :- अथवा चूतलताना कहेवा प्रमाणे जो भाग्य हुशे तो प्रभातमां नेणीनी साथे दर्शननी अनुकूलता थशे। हिन्दी अनुवाद : - अथवा जैसा चूतलता ने कहा, वैसे यदि मेरे भाग्य होंगे तो प्रभात में उनके दर्शन की अनुकूलता होगी। गाहा : गुरु-विरह-जलण-जालावलीहिं संतावियस्स हिययस्स। अन्नो नत्थि उवाओ पिय-दंसण-ओसहं मोत्तुं ।। २४१।। छाया : गुरू-विरह-ज्वलन-ज्वालावलीभिः सन्तापितस्य हृदयस्य । अन्यो नास्त्युपायः प्रियदर्शनौषधं मुक्त्वा ।।२४१।। अर्थ :- मोटा विरह रूपी आगनी ज्वालाओनी श्रेणिवड़े सन्तप्त हृदयने प्रियना दर्शनरूप औषधने मूकीने बीजो कोई उपाय नथी ! हिन्दी अनुवाद :- अत्यंत बड़ी विरहाग्नि की ज्वालाओं से सन्तप्त हृदय को प्रियदर्शन रूप औषधि के समान दूसरी कोई औषधि नहीं है। गाहा : एमाइ-विगप्पेहिं पणट्ठ-णिद्दस्स मज्झ सा रयणी । चउ-जामावि हु तइया जाम-सहस्सोवमा जाया ।। २४२।। छाया : एवमादि विकल्पैः प्रणष्ट-निद्रस्य मम सा रजनी। चतुर्यामाऽपि खल तदा याम-सहस्रोपमा जाता ।।२४२।। अर्थ :- इत्यादि विकल्पो वड़े चाली गयेली निद्रावाळी चारप्रहरनी पण ते रात्री निश्चे न्यारे हजारो प्रहरवाळी थई । हिन्दी अनुवाद :- इत्यादि विकल्पों से गई हुई नींदवाली चार प्रहर की रात्रि भी हजारों प्रहर के समान हो गई। गाहा : असरिस-दूसह-संताव-तावियं कहवि माणसं मज्झ । फुडमाणंपि न फुट्ट मन्ने तहसणासाए ।। २४३।। छाया : असदृश-दुःसह-संताप-तापितं कथमपि मानसं मम । स्फुटमानमपि न स्फुटं मन्ये तद्दर्शनाशया।।२४३।। अर्थ :- असदृश-दुःसह संतापथी तप्त, तूटतु एवं पण मारू मन तेणीना दर्शननी आशावड़े तूटतु न हतु एम हुं मानु छु । 131 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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