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________________ अर्थ :- मनना तापने दूर करनार ते कमलोदरीनो कोमल हाथ मारा हाथमां जे दिवसे लागे तेने शुं हुं दिवस मानु ? हिन्दी अनुवाद :- मन के ताप को दूर करनेवाली उस कमलोदरी का कोमल हाथ मेरे हाथ में जिस दिन आयेगा, उस दिन को मैं कौनसा दिन मानूं ? गाहा : अच्छउ ता दूरे च्चिय पाणिग्गहणाइयं तु सह तीए । अम्हाण मणो-दइयं दंसणमवि दुल्लहं मन्ने ।। २३८ । । छाया : अस्तु तावद्दूरैव पाणिग्रहणादिकं तु सह त या । अस्माकं मनो- दयितं दर्शनमपि दुर्लभं मन्ये || २३८|| अर्थ :- तेणीनी साथै पाणिग्रहणादिक तो दूर ज रहो पण अमारा मनने प्रिय एवं तेनु दर्शन पण दुर्लभ छे ! हिन्दी अनुवाद :- उनके साथ पाणिग्रहणादिक तो दूर रहा, मेरे दिल को प्रिय दर्शन भी दुर्लभ है। गाहा : किं मज्झ जीविएणं किं वा मह हंदि ! मणुय - जम्मेण । जो विरह- दुक्ख - समणं तीए वयणं न पेच्छामि ? ।। २३९ ॥ छाया : किं मम जीवितेन किं वा मम हत! मनुज-जन्मना ! यद् विरह- दुःख - शमनं तस्या वदनं न पश्यामि ? ।।२३९ ।। अर्थ :- हवे मारे जीववा वडे शुं ? अथवा आ मनुष्य जन्मवड़े पण मारे शुं काम? के जे विरहना दुःखने शान्त करनार तेणीनुं मुख पण जोई शकतो नथी ? हिन्दी अनुवाद :- अब मुझे जीवन से क्या ? अथवा इस मनुष्य जन्म से भी क्या काम ? कि जो विरहाग्नि के दुःख को शान्त करनेवाले उनका मुख भी नहीं देख सकता। गाहा : अहवा चूयलयाए भणिएणं भविस्सई पभायम्मि । तीए सह दंसणयं अणुकूलो जल विही होही ।। २४० ।। छाया : अथवा चूतलतायाः भणितेन भविष्यति प्रभाते । तया सह दर्शन - मनुकूलो यदि विधि भविष्यति । । २४० । । Jain Education International 130 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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