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________________ गाहा : चीयव्व मुणालाई नलिणि दलाइंपि अंगार - रासि - सरिसा पsिहासइ छाया : चैत्येव मृणालानि नलिनि-दलान्यपि ज्वाला- तुल्यानि । अङ्गार- राशि - सदृश प्रतिभासते हंस - तुलिरपि ।। १८८।। अर्थ :- कमलनाल चिता जेवी लागती हती, कमलना पत्र ज्वाला तुल्य लागता हता, अने सुंदर शय्या पण अङ्गार-राशि जेवी लागती हती। हिन्दी अनुवाद : कमलनाल चिता जैसी लगती थी, कमल के पत्ते ज्वाला जैसे लगते थी और सुंदर शय्या भी अङ्गार - राशि जैसी लगती थी। - गाहा : जाल - तुल्लाई । हंस - तूलीवि ।। १८८ ।। पुट्ठा न देइ वयणं आलवइ न सहि जणं सिणिर्द्धपि । झाणोवगया वर जोगिणिव्व जाया विगय- चेट्ठा ।। १८९ ।। 1 छाया : पृष्टा न ददाति वचन - मालपति न सखि - जनं स्निग्धमपि । ध्यानोपगता वर - योगिनीव जाता विगत - चेष्टा ।।१८९|| अर्थ :- पूछायेली ते कांई उत्तर आपती नथी, स्नेहल सखीजन साथै पण बोलती नथी पण ध्यानमा रहेला योगिनी जेम मूर्च्छित जेवी थई गई हती! हिन्दी अनुवाद :- तथा पूछने पर भी कुछ प्रत्युत्तर नहीं देती है, स्नेहान्वित सखिजन के साथ भी बोलती नहीं है किन्तु वह ध्यानस्थ योगी की तरह मूर्च्छित जैसी लगती है। गाहा : पिय- विरह-पिसाएणं गहिया गय- चेयणावि हु सहीहिं । आसासिज्जइ वरई सुंदर ! नाम - मंतेहिं । । १९० ।। तुह छाया : प्रिय - विरह-पिशाचेन ग्रहिता गत-चेतनाऽपि हि सखीभिः । आश्वास्यते वरति सुन्दर ! तव नाम - मन्त्रैः ।।१९०।। अर्थ :- प्रियना विरहरूपी पिशाचवड़े ग्रस्त थयेली, गयेली चेतनावाळी पण सखीओ वड़े आश्वासन अपाय छे पण हे सुन्दर ! तेी तो तारा नाम मन्त्र साथै ज परणी छे । हिन्दी अनुवाद :प्रिय के विरहरूप पिशाच से ग्रसित, निश्चेष्ट चैतन्यवाली उसे सखियों द्वारा आश्वासन दिया जाता हैं। पर हे सुन्दरी ! उसने तो तेरे नाम के साथ ही विवाह किया है। Jain Education International 114 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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