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अर्थ :- व्यारे हर्षथी भन्टेला हृदयवाळा में आ प्रमाणे कहयु : हे भद्रे! तमने कोना थी संकट छे? व्यारे सोमलताए मने कहयु - “कुसुमबाणथी मने भय छ।” हिन्दी अनुवाद :- तब हर्षयुक्त हृदयवाला मैने इस प्रकार कहा - हे भद्रे ! आपको किससे संकट है? तब सोमलता ने मुझसे कहा - "कुसुमबाण से मुझे भय है।
गाहा :
ईसीसि विहसिऊणं वज्जरियं ताहि भाणुवेगेण ।
कडकडिय-सव्व-संधि गय-लायन्नं तुह सरीरं ।।१६३।। छाया :
ईषदीषत् विहस्य कथितं तदा भानुवेगेन ।
कडकडित-सव्व-सन्धिं गत-लावण्यं तव शरीरम् ।।१६३।। अर्थ :- त्यारे कंईक हसिने भानुवेगे कहयु - "तारू शीर जीर्ण थयेला सर्व सांधावाळु अने लावण्यरहित छे .... हिन्दी अनुवाद :- तब थोड़ा हंसकर भानुवेग कहता है - "आपका शरीर तो जीर्ण
और लावण्य रहित है। गाहा :
निन्नट्ठ-दंत-पंतिं सिय-केस-हसंत-सीस-सोहिल्लं ।
दूर-पलंबिर-वलि-वलय-सहिय-सिहिणेहिं बीभच्छं।।१६४।। छाया :
निर्नष्ट-दन्त-पंक्तिं श्वेत-केश-हसन्-शीर्ष -शोभावान् ।
दूर-प्रलंबित-वलि-वलय-सहित-स्तनाभ्यां बीभत्सम् ।।१६४।। अर्थ :- जेनी दांतनी पक्तिं पण नाश थई छे, सफेदबाळना हास्यथी मस्तक शोभी-रहयु छे। दूर लटकती त्रिवली सहित स्तनावड़े बीभत्स तारू रूप छ। हिन्दी अनुवाद :- जिनकी दन्तपंक्ति नष्ट हो गई है, श्वेतकेश के हास्य से मस्तक शोभायमान है, लटकती हुई त्रिवली सहित स्तनों द्वारा बीभत्स तेरा रूप है। गाहा :
दठूण भीय-भीओ दूरं दूरेण वच्चइ अणंगो।
तत्तो कह तुज्झ भयं जराए जज्जरिय-देहाए ? ।।१६५।। छाया :
दृष्ट्वा भीत-भीतो दूरं दूरेण व्रजति अनङ्गः ।
ततः कथं तव भयं जरया जर्जरित-देहेन ? ||१६५।। ४. कडकडित = जीर्ग|
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