SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छाया: ततो भणति भनुवेगो लघु प्रवेशय एवं भणिते । अथ सा एव सोमलता समागता आवयो पार्श्वे ।।१५९।। अर्थ :- प्यार पछी भानुवेगे कहयु : "तेणीने जल्दी अंदर मोकलो" आ प्रमाणे कहेवाये छते ते ज सोमलता आमारी पासे आवी ।। हिन्दी अनुवाद :- अतः भानुवेग ने कहा "उन्हें जल्दी से अंदर आने दीजिए'' इस प्रकार कहने पर सोमलता हमारे पास आई। गाहा : कय-उवयारा ताहे उवविट्ठा भणइ सायरं वयणं । एगंतं कुणह तओ चूयलया पेसिया तत्तो ।।१६०।। छाया : कृतोपचारा तदोपविष्टा भणति सादरं वचनम् । एकांतं कुरु ततश्चूतलता प्रेषिता ततः ।। १६०।। अर्थ :- त्यारे करेला उपचारवाळी, बेठेळी तेणीए आदपूर्वक कहयु “एकांत कन्टो” व्यारे अमे लोकोए चूतलताने मोकली दीधी। हिन्दी अनुवाद :- तब पायी हुई सन्मानवाली बैठकर आदरपूर्वक उसने कहा - “एकान्त करो'' तब हमने चूतलता को बाहर जाने को कहा। गाहा : भणियं सोमलयाए सरणागय-वच्छला जओ सुयणा । परितायह परितायह ममं तओ भीम-वसणाओ ।।१६१।। छाया : भणितं सोमलतया शरणागत-वत्सला यतः सज्जनाः। परित्रायस्व परित्रायस्व मम तम्सात् भीम-व्यसनात् ।।१६१।। . अर्थ :- त्यार पछी सोमलताए कहयुः - “हे शरणागतवत्सल सज्जनो। मने ते घोर-संकटमाथी बचावो | मारू रक्षण करो।" हिन्दी अनुवाद :- बाद में सोमलता ने कहा - "हे शरणागतवत्सल सज्जनों! मुझे इस महासंकट से बचाइए! मेरी रक्षा कीजिए!" गाहा : हरिसाऊरिय-हियएण ताहे एवंविहं मए भणियं । कत्तो भद्दे! वसणं, सा भणई कुसुमबाणाओ।।१६२।। छाया: हर्षापूरित-हृदयेन तदा एवंविधं मया भणितम् । कुतो भद्रे! व्यसनं सा भणति कुसुमबाणात् ।।१६२।। 105 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy