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________________ गाहा : ताहि मए वज्जरियं साहिज्जइ तस्स जो न याणाइ। तं पुण जाणंतोवि हु अलियं चिय पुच्छिसि ममंति ।।१५६।। छाया : तदा मया कथितं कथ्यते तस्य यो न जानाति । तं पुनो जाननपि खलु अलीकमेव पृच्छसि ममेति ।। १५६।। अर्थ :- त्यारे में कहयु - “जे जाणातो नथी तेने कहेवाय छे । तुं तो जाणतो छता पण खोटु ज मने पूछे छ। हिन्दी अनुवाद :- तब मैंने कहा - "जो अज्ञात है उसका स्वरूप कहा जाता है, तूं तो जानने पर भी उल्टा मुझसे ही पूछता है। गाहा : एमाइ-वयण-वित्थर-वज्जरण-परायणाण अम्हाणं । चूय-लया गिह-दासी आगंतुणं इमं भणइ ।।१५७।। छाया : एवमादि-वचन-विस्तर-कथ्यमान परायणयो-रावयोः । चूतलता गृहदासी आगत्य इमं भणति ||१५७।। अर्थ :- इत्यादि वचनना विस्तारने कहेवामां अमे बन्ने तत्पर हता तेटलीवारमा “चूतलता" नामनी घरनीदासी आवीने अने कहे छ। हिन्दी अनुवाद : - इत्यादि बात-चीत करने में हम दोनों लगे थे, इतनी देर में "चूतलता' गृहदासी आकर इस प्रकार कहती है। गाहा: अच्छइ दुवार-देसे समागया तुम्ह सण-निमित्तं । सोमलया नामेणं वर-धाई कणगमालाए ।। १५८।। छाया : तिष्ठति द्वार-देसे समागता तव दर्शन-निमित्तम् । सोमलता नाम्ना वर-धात्री कनकमालायाः।।१५८।। अर्थ :- मुख्य द्वार पर आपना दर्शनना निमित्ते आवेली कनकमालानी धावमाता नामवड़े “सोमलता" द्वार पर उभी छे। हिन्दी अनुवाद :- आपके दर्शन हेतु कनकमाला की धायमाता “सोमलता'' आकर द्वार पर खड़ी है। गाहा :- कनकमालानी धावमाता- आगमन तो भणइ भाणुवेगो लहुं पवेसेह एव भणियम्मि । अह सच्चिय सोमलया समागया अम्ह पासम्मि ।।१५९।। 104 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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