SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिन्दी अनुवाद : - तब उसने हंसकर कहा - मैंने तुझे पहले ही कहा था - कि ऐसी स्त्रियों का दर्शन करना अच्छा नहीं है। गाहा : ता तीए चक्खु-दोसा एसो सव्वोवि तुज्झ संतावो । दाविज्जइ सा हत्थं पट्टीए जेण होइ सुहं ।।१५३।। छाया : तस्मात् तस्याः चक्षु-दोषात् एषः सर्वोऽपि तव संतापः। (दापयति) ददाति सा हस्तं पृष्ठे येन भवति सुखम् ।।१५३।। अर्थ :- तेणीना दृष्टि दोषथी आ सर्व पण तारो संताप छ। हवे तो तेणी तारी पीठ उपर हाथ फेरवशे तो ज तने सुख थशे।" हिन्दी अनुवाद :- उसके दृष्टि दोष से ही यह सब कष्ट तुझे हो रहे हैं, अब तो वह आकर जब तेरी पीठ पर हाथ रखेगी तभी तुझे खुशी होगी। गाहा : नीससिय मए भणियं संदेहो जीवियस्सवि य अम्हं । तं पुण सुहिओ भाओ य परिहासं कीस नो कुणसि? ।।१५४।। छाया : निःश्वस्य मया भणितं संदेहो जीवितस्याऽपि च मम । त्वं पुनः सुखितो भ्राता यः परिहासं कस्मानः करोसि?|१५४।। अर्थ :- त्यारे में उंडो श्वास छोडीने कहयुं हवे तो मारू जीवनपण संदेहमय छे । वळी तुं मारो सुखीभाई थईने परिहास करे छे? हिन्दी अनुवाद :- तब मैंने गहरा श्वास छोड़कर कहा - अब तो मेरा जीवन भी सन्देहमय है और तूं मेरा भाई होकर भी परिहास करता है? गाहा :__ तो भणइ भाणुवेगो सब्भाव-विवज्जियस्स पुरिसस्स। अन्नायम्मि सरूवे किं काउं सक्किमो अम्हे ? ।।१५५।। छाया : ततो भणतिभानुवेगः सद्भाव-विवर्जितस्य पुरुषस्य । अज्ञाते स्वरूपे किं कर्तुम् शक्नुवः आवाम ? ||१५५।। अर्थ :- त्यारपछी भानुवेग कहे छे जे पुरुषजी साचीबात अमे जाणीये नहि अने अमने साची वस्तुनुं स्वरूप कहे नही तो अमें शु की शकीए? हिन्दी अनुवाद :- पुनः भानुवेग कहता है - सच्ची बात या जिसका सच्चा स्वरूप हम जानते नहीं हैं उसमें हम भी क्या कर सकते हैं? 103 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy