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________________ अर्थ :- आवा तारा रूपने जोईने भयथी डरतो अनंग दूर-सुदूर भागी जाय छे। तो जराथी जर्जरित देहवाळी तने भय केवी रीते थाय छे? हिन्दी अनुवाद :- ऐसे तेरे रूप को देखकर भय से कम्पता हुआ अनंग भी सुदूर चला जाता है तो फिर वृद्धावस्था से जर्जरित देहवाली तुझे भय कैसे लगता है? गाहा : सोमलयाए भणियं मा मं उवहससु सुणसु वुत्तंतं । जह कुसुम-बाण-विहियं परंपराए मह भयंति ।।१६६।। छाया : सोमलतया भणितं मामुपहसस्व शृणु वृत्तान्तम् । यथा कुसुम-बाण-विहितं परंपरया मम भयमिति।।१६६।। अर्थ :- हवे सोमलता कहे छे। तमे माराविषे हसो नहि। अने माटो वृत्तान्त सांभळो जेवीरीते कुसुम-बाणथी विंधायेली परंपराथी मने भय छ। हिन्दी अनुवाद :- अब सोमलता कहती हैं - आप मेरे बारे में हंसो नहीं? मैं कहती हूं सो सुनो, कुसुमबाण से पीड़ित कनकमाला (का परम्परा) से मुझे भय है। गाहा : उज्जाणाउ कीलिय समागया निय-गिहे कणगमाला। विच्छाय- वयण-सोहा विड-प्पगहिया ससि-कलव्व ।।१६७।। छाया : उद्यानात् क्रीडित्वा समागता निज-गृहे कनकमाला। विच्छाद-वदन-शोभा विडप्प-गृहीत शशि-कलेव ।। १६७।। अर्थ :- उद्यानथी क्रीडा करीने कनकमाला पोताना घरे आवी व्यारे तेनुं मुख राहु थी ग्रसित चन्द्रकलानी जेम करमायेलुं जोयु। हिन्दी अनुवाद :- उद्यान से क्रीड़ा करके जब कनकमाला अपने घर आई तब उसका मुख राहु से ग्रस्त चन्द्रमा की तरह मुरझाया हुआ था। गाहा : तत्तो य मए पुट्ठा कीस तुमं पुत्ति। विमण-दुम्मणिया? । न य तीए किंचि सिटुं सुदीहरं नवरि नीससिहउं ।।१६८।। छाया : ततश्च मया पृष्टा कस्मात् त्वं पुत्रि! विमन-दुर्मनिता ? | न च त्वया किञ्चित् शिष्टं सुदीर्घ नवरि निःश्वस्य ।।१६८।। ५. विडप्प = दे० राहु 107 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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