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________________ हिन्दी अनुवाद :- क्रीड़ारत स्त्रियों के नूपुर की अवाज से और मदन महोत्सव से संतुष्ट हुए वृक्ष भी सुंदर गीत गाने लगे हों, ऐसा लग रहा है। गाहा : मलयानिल-हल्लाविय- साहाहिं विघुम्ममाणया धणियं। कोइल-कय-कल-कोलाहलेहिं अफुडक्खरालावा ।।१०९।। आयंबिर-नव-किसिलय-आयंब-मुहा महीरुहा जत्थ । आसाइय-महु-मासा मत्ता इव सच्चविज्जति ।।११०।। छाया : मलयानिल-चालित-शाखाभिः विधूर्णयमानकाः गाढम् । कोकिल-कृत-कल-कोलाहलैः अस्पष्टाक्षरालापाः।।१०९।। आताम्रा नव-किसलया-ताम्रमुखा महीरुहाः यत्र । आस्वदित-मधुमासो मत्ता इव सत्यापयति ।।११०।। अर्थ :- मलय पर्वतना पवन थी डोलती शाखाओ वड़े अत्यंत घूणतां होय तेम कोयलना करायेला मनोहर कोलाहल वड़े अव्यक्त धीमां संवादथी 'युक्त तथा ? लालाश पडती नवी कुंपळोना लाल मुखवाळा वृक्षोए आस्वाद को छे मधुमास (वसंतऋतु) नो अने तेथी ज मत्त थया होय तेवा लागे छे ! । हिन्दी अनुवाद :- मलय पर्वत के पवन से हिलती शाखाओं द्वारा नृत्य करते कोयल के मनोहर आवाज से युक्त, तथा रक्तवर्णी नूतन किसलय से लालमुखवाले वृक्ष मधुमास का आस्वाद करने के कारण मदोन्मत्त हो गये हों, ऐसा लगता है । गाहा : सुविसट्ट-कुसुम-सोहंत-मंजरी-पुंज-रइय-सेहरया । जोहारेंतिव पवणोणयाहिं साहाहिं पउर-जणं ।।१११।। छाया : सुविकसित-कुसुम शोभायमान-मञ्जरी-पुज-रचित शेखरता ।। प्रणमंतीव पवनावनताभिः शाखाभिः पौर-जनम् ||१११।। अर्थ :- सुंदर विकसित पुष्पोथी शोभती मजीओना पुजथी रचित शिखाओ वड़े अने पवनथी नमेली शाखाओ जाणे नगर जनो नो सत्कार करती होय तेम लागे छे! हिन्दी अनुवाद :- सुन्दर विकसित पुष्पों के मनोहर मञ्जरी के पुञ्ज से रचित और पवन से झुकी शाखाएं नगर जनों का जैसे स्वागत करती हों, ऐसा लग रहा है। 89 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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