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________________ छाया : भणितं च तेन निशामय! अद्य यत् मदन त्रयोदशी भद्र! | मकरन्दुद्यान स्थितस्य एषो नरनारिगणः तेन यात्रया मदनस्य || १०५ ।। पूजार्थं तस्य व्रजति प्रमोदा । आवां गच्छावः प्रेक्ष्यावः कुसुमशर - यात्राम् ।। १०६ ।। अर्थ :- व्यारे भानुवेग वड़े कहेवायु हे भद्र ! तुं सांभळ आजे मदन-तेरस छे तेथी मकरंद उद्यानमा रहेली मदननी यात्रा माटे तेओ जई रहया छे। आ स्त्री-पुरुषनो समुदाय आनंदपूर्वक मदननी पूजा माटे जाय छे। अने आपणे पण त्यां जइए अने कामदेवनी यात्राने जोइए। हिन्दी अनुवाद तब भानुवेग ने कहा - "हे भद्र! तू सुन! आज मदन- त्रयोदशी है, अतः मकरन्द उद्यान में विराजित मदन की यात्रा के लिए ये सभी जा रहे हैं। यह हर्ष युक्त स्त्री-पुरुष का समुदाय मदन की पूजा के लिए जा रहा है। चलो हम भी उस कामदेव की यात्रा को देखेंगे।" ; गाहा :- मदनोद्यान तरफ प्रयाण तत्तो य मए भणियं एवं होउत्ति दोवि कय- सिंगारा पयओ पत्ता य कमेण छाया : ततश्च मया भणितं एवं भवतु इति द्वौ अपि संचलितौ । कृत - श्रृंगारौ प्रयतः प्राप्तौ च क्रमेण उद्यानम् ||१०७।। अर्थ :- अने त्यारबाद मारा वड़े कहेवायु “एम थाव” अने अमे बन्ने पण करेला शृङ्गारवाळा प्रयत्न पूर्वक चालता क्रम वड़े त्यां उद्यानमा पहोंच्चा । हिन्दी अनुवाद :- इस तरह मेरे द्वारा कहा गया "ऐसा ही हो" और हम दोनों अलंकृत देहवाले प्रयत्न पूर्वक चलते हुए उद्यान में जा पहुंचे। गाहा :- मदन उद्यान नुं वर्णन संचलिया । उज्जाणं ।। १०७ ।। कीलंत - कामिणी- यण-रणंत- नेउर- रवेण तरु-नियरो | मयण-महूसव- तुट्ठो गायइ इव चच्चरिं जत्थ ।। १०८ ।। छाया : क्रीडयन् - कामिनी - जन रणत् नूपुर-रवेण-तरु-निकरः । मदन- -महोत्सव-तुष्टः गायतीव चच्चरीं यत्र ।। १०८ । अर्थ :- क्रीडा करती स्त्रीओना झंकार करता नूपुरना अवाज वड़े अने मदन महोत्सवथी संतुष्ट थयेला वृक्षो जाणे सुंदर गीत गाय रहया होय तेवुं लागे छे । Jain Education International 88 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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