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गाहा :
तम्मि या पवरुज्जाणे घण-तरु-वर-मंडिए सुरमणीए । दंसणमेत्तुप्पाइय-मयणे
मयरंद-नामम्मि ।।११२।। नाणा-नेवत्थेणं नायर-लोएण परिगया जाव ।
पविसामो ता दिटुं दूराओ मयण-देव-हरं ।।११३।। छाया:
तस्मिंश्च प्रवरोद्याने घनतरुवरमण्डिते सुरमणिके । दर्शनमात्रोत्पादित-मदने मकरंद-नाम्नि ।।११२।। नाना नैपत्थ्येन नागर-लोकेन परिगता यावत् ।
प्रविसामः तावद् दृष्टं दूराद् मदन-देव-गृहम् ।।११३।। अर्थ :- सघन वृक्षोथी अत्यंत शोभता, रमणीय, अने जोवमात्रथी कामने उत्पन्न करनार, विविध प्रकारना नेपथ्यने धारण करेला नगर-लोकथी परिवरेला ते श्रेष्ठ मकरंद नामना उद्यानमा ज्यां सुधी अमे प्रवेश्या त्यां सुधीमां दूरथी मदन देवनुं मंदिर जोवायु। हिन्दी अनुवाद :- सघन वृक्षों से अत्यंत सुन्दर, रमणीय और दृष्टिपात से ही काम को उत्तेजित करनेवाले, विविध प्रकार के वस्त्र को धारण किए नगरवासियों से परिवृत उस श्रेष्ठ मकरंद उद्यान के द्वार के निकट आते ही दूर से ही मदनदेव का मंदिर देखा। गाहा :
रइ-जुत्त-मयण-पूयण-निमित्तमित्तेण पउर-लोएण।
पडिपुन्नं सुविलासं उत्तुंगं तुंग-पागारं ।।११४।। छाया :
रति-युक्त-मदन-पूजन-निमित्तमात्रेण पौरलोकेन।
प्रतिपूर्णं सुविलास-मुत्तुङ्ग-तुङ्ग-प्राकारम् ।।११४।। अर्थ :- रतिथी युक्त मदन-पूजननां निमिते नगरलोको वड़े भरायेलु ते उद्यान विलास ना अत्यंत ऊँचा किल्ला जेवु लागतु हतु। हिन्दी अनुवाद :- रति से युक्त मदन-पूजा के लिए आए नगरवासियों से भरा वह उद्यान विलास का उच्च किला लगता था। गाहा :- अविय । 'उद्दाम- वज्जत-अच्चंत-वर-मद्दलं
मत्त-वर-कामिणी-संघ-कय-गुंदलं।' चच्चरी-सह-अक्खित्त-कामुय-जणं
पडहिया-सद्द-नच्चंत-बहु-वामणं ॥११५।। १. गुंदलं = दे० खुशी की आवाज
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