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अर्थ :- अथवा तो शु? आ माला, विद्या अथवा सम्पत्तिनी जेम मने मळशे? अपायेली कोईना बड़े नाश थशे ? के वळी पण मळशे ते हु जाणतो नथी! हिन्दी अनुवाद :- अथवा तो क्या यह माला, विद्या अथवा सम्पत्ति की तरह मुझे प्राप्त होगी? या मिली हुई किसी के द्वारा नाश होगी? या पुन: प्राप्त होगी मैं नहीं जानता। गाहा :
एवं आणच्छियत्थो सुविण-सरूवस्स उट्ठिओ अहयं । काउं पभाय-किच्चं अह सहिओ भाणुवेगेण ।।९९।। आरूढो पासाए उवरिम-भूमीए चित्त-सालाए।
मणि- रयण कोट्टिमम्मी उवविट्ठो मत्तवारणए ।।१०।। छाया :
एवं आनिश्चितार्थः स्वप्न-स्वरूपस्य उत्थितोऽहकम् । कृत्वा प्रभात-कृत्यं अथ कथितो भानुवेगेन ।।९९।। आरूढः प्रासादे उपरिम-भूमौ चित्र-शालायाम् ।
मणि-रत्न कुट्टिमे उपविष्टो मत्तवारणे ।। १००।। अर्थ :- आ प्रमाणे स्वप्नना स्वरूपनो निश्चय करवा माटे हुँ उठ्यो । प्रातः कृत्य कर्या पछी भानुवेगवड़े कहेवायलो महेलनी उपरनी भूमिनी चित्र-शालामा आरूढ़ थयो अने त्यां मणि-रत्नोनी जडेला झरूखामां बेठो। हिन्दी अनुवाद :- इस तरह स्वप्न के स्वरूप को निश्चित करने के लिए मैं जगा
और प्रातः कृत्य करके भानुवेग के कहने से मैं भवन के ऊपर स्थित चित्रशाला के कक्ष में आरूढ़ हुआ और वहाँ मणि-रत्नों से जड़ित झरोखे में बैठ गया। गाहा :
अह तं पभाय-दिलृ सिटुं सुविणं तु भाणुवेगस्स ।
निच्छइउं नो सक्कइ सोवि हु सुविणस्स सब्भावं ।।१०१।। छाया :
अथ तं प्रभात-दिष्टं शिष्टं स्वप्नं तु भानुवेगम् ।।
निश्चेतुं न शक्नोति सोऽपि स्वप्नस्य सद्भावम् ।। १०१।। अर्थ :- त्यारबाद प्रभाते जोयेला स्वप्नो निश्चय करवा माटे भानुवेगने मे कहयुं पण ते पण स्वप्नना सद्भावनो निश्चय करवा समर्थ न थयो! हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् सुबह देखे हुए स्वप्न के फल को जानने के लिए मैंने भानुवेग को कहा किन्तु वह भी स्वप्न के फल का निश्चय करने में असमर्थ रहे।
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