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________________ अर्थ :- सुकायेली ते माळा मारा वड़े फरी जराय करमाया वगरनी सुगंधित करायेली छे एम कहिने कोईना पण वड़े मारा कण्ठमां ते माळा आरोपाई। हिन्दी अनुवाद :- सूखी हुई वह माला सुन्दर सुगन्धित करके किसी ने मेरे कण्ठ में पहना दिया। गाहा :- स्वप्न फल विचारणा ताव पडु-पडह-झल्लरि-काहल-भंभा-मउंद-सद्दालं । सोउं तूरस्स रवं झत्ति पणट्ठा महं निद्दा ।।९६।। छाया: तावत् पटु-पटह-झल्लरि-काहल भम्भा मुकुन्द शब्दालुः । श्रुत्वा तूर्यस्य रवं झटिति प्रणष्टा मम निद्रा ||९६।। अर्थ :- तेटलीवारमा सारी रोते पटह, जलर, काहल, भम्भा, मुकुन्द आदि शब्द थी व्याप्त वांजिनना अवाजने सांभळीने जल्दीथी मारी निद्रा उडी गई। हिन्दी अनुवाद :- उसी क्षण में पटह,जलर, काहल, भम्भा, मुकुन्द आदि शब्दों से युक्त वाजिंत्र की अवाज को सुनकर मेरी नींद उड़ गयी । गाहा : तो हरिस-विसायढे दटुं सुमिणं विचिंतियं हियए । किं नाम मज्झ सूयइ अदिट्ठ-पुव्वं इमं सुमिणं ? ।।९७।। छाया: ततः हर्ष-विषादाढ्यं दृष्ट्वा स्वप्नं विचिन्तितं हृदये । किम् नाम मम सूचयति अदृष्ट-पूर्वम् इदम् स्वप्नम् ?||९७।। अर्थ :- तेथी हर्ष अने विषादयुक्त स्वप्न जोईने में हृदयमां विचार्यु “आवु स्वप्न में पहेला क्यारेय जोयु नथी तो आ मने शुं सूचवे छे ?" हिन्दी अनुवाद :- अत: हर्ष और विषादयुक्त स्वप्न देखकर मैं मन में सोचने लगा कि “ऐसा स्वप्न मैंने पहले कभी नहीं देखा तो यह स्वप्न मुझे क्या सूचित करता है?" गाहा : का हंदि ! इमा माला विज्जा वा संपया व मह होज्जा। दिन्ना केणवि नट्टा पुणरवि लद्धा न याणामि ।।९८।। छाया : का हतः ! इमा माला विद्या वा सम्पदा इव मम भविष्यति । दत्ता केनाऽपि नष्टा पुनरपि लब्धा न जानामि ।।९८।। 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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