________________
अर्थ :- तारा पिता पवनगति कुशल छे ने ? अने बकुलवती फईवा पण कुशल छेने ? त्यार पछी मारा वड़े कहेवायु बधा ज कुशल छे।
हिन्दी अनुवाद :- आपके पिता पवनगति और बकुलवती बुआ कुशल पूर्वक हैं न?” फिर मैंने कहा - "हाँ सभी कुशल पूर्वक हैं।
गाहा :
एत्थेव आगयाइं इमाई चिट्ठति भद्द! जिण- भवणे । अम्मा-पिऊण मूलं समायओ तेण सहिओ हं ।। ८३ ।।
छाया :
अत्रैवागतानि इमानि तिष्ठन्ति भद्र ! जिन भवने । मातृ-पित्रोः मूलं समागतो तेन सहितोऽहम् ।। ८३ ।। अर्थ :- अहीं ज आ लोको आवेला छे अने भद्र ! जिन-भवनमां बेठा छे । हुं माता - पितानी साथे अहीं आवेलो धुं पछी तेनी साथे हुं माता-पिता पासे गयो ।
हिन्दी अनुवाद :यहीँ पर वे लोग आए हुए हैं और हे भद्र ! जिनभवन में विराजित हैं। मैं माता-पिता के साथ ही यहाँ पर आया हूँ। बाद में उनके साथ मैं माता-पिता के पास गया ।
गाहा :
सायरमवगूढो सो तेहिं पउत्तिं च पुच्छिओ भणइ ।
कुसलं मह जणगाणं नागमणं कारणावेक्खं ।। ८४ ।।
छाया :
सादरमवगूढः सः तैः प्रवृत्तिं च पृष्टो भणति ।
कुशलं मम जनकानां नागमनं कारणापेक्षम् ||८४||
अर्थ :
आदरपूर्वक तेओनी प्रवृत्ति विषे पूछायेलो ते कहे छे। मारा पिता कोई कारणवश थी आव्या नथी पण तेओ पण कुशल छे।”
हिन्दी अनुवाद :- आदरपूर्वक उनका कुशल पूछने पर उन्होंने कहा - " मेरे पिता कतिपय कारणों से यहाँ नहीं आए हैं किन्तु वे भी कुशल पूर्वक हैं। "
गाहा :
अह सो मए भणिओ वित्तप्पाया इमा हु जिण - जत्ता । संपइ पुण अम्हाणं आगच्छसु पाहुण ताव ।।८५ ॥
छाया :
अथ सो मया प्रभणित वृत्तप्राया हमा खलु जिन यात्रा । सम्प्रति पुनः अस्माकं आगताः प्राघूर्णकाः तावत् ।। ८५ ।।
Jain Education International
81
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org