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________________ गाहा : कत्थइ तरुण-नरेहिं दिज्जंतं रासयं सुणेमाणो। सुर-सुंदरीहिं कत्थइ गिजंतं धवल संघायं ।।७९।। छाया :। क्वचित तरुण-नरैः दीयमानं रासकं श्रुण्वानः | सुर-सुन्दरीभिः क्वचित् गीयमानं धवल संघातम् ।।७९।। अर्थ :- तो क्यांक युवान-मनुष्योवड़े अपाता रासडाने सांभळतो क्यांक सुर-सुन्दरीओवड़े गवाता धवल मंगल गीतोने सांभळतो। हिन्दी अनुवाद :- कहीं युवाओं के गरबे सुनता था तो कहीं सुर-सुन्दरियों के धवल मंगल गीत सुनता था। गाहा :- सिद्धायतनमा मातुल पुत्र चित्रवेगनुं मिलन-आलाप-संलाप एवं च जाव कोऊहलेण अवरावरेसु ठाणेसु । हिंडामि तत्थ भवणे लीलाए समं वयंसेहिं ।।८।। ताव मह माउल-सुओ सहरिसमागम्म साइयं दाउं । वज्जरइ भाणुवेगो पभूय-कालाओ दिट्ठो सि ।।८१।। छाया : एवं च यावत् कौतूहलेन अपरापरेसु स्थानेसु । भ्रमामि तत्र भवने लिलया समं वयस्यैः ।।८०।। तावत् मम मातुल-सुतः सहर्षमागम्य स्वादिमं दत्वा । कथयति भानुवेग ! प्रभूत-कालात् दृष्टोऽसि ।।८१।। अर्थ :- आ प्रमाणे ज्यांसुधी जुदा स्थानोमां कुतूहल वळे फरतो हतो तेटलीवारमा त्यां भवनमां मित्रोनी साथे क्रीडाओ करतो मारा मामाना छोकरो आव्यो अने मुखवास आपीने कहे छे हे भानुवेग ! घणा समयथी तुं जोवायो छे। हिन्दी अनुवाद : - इस प्रकार जब तक अलग-अलग स्थानों में कुतूहल देखते हुए घूम रहा था तब तक मेरे मामा का लड़का वहां आया और मुखवास अर्पित करके बोला- "हे भानवेग! बहुत समय के बाद तू दिखाई दिया है। गाहा : कुसलं च पवणगइणो पिउ- भगिणीए य बउलवइयाए? । तत्तो य मए भणियं कुसलं सव्वेसि, अन्नं च ।।८ ।। छाया: कुशलं च पवनगतेः पितृ-भगिन्याश्च बकुलवत्याः ? | ततश्च मया भणितं कुशलं सर्वेषामन्यच्च ।।२।। 80 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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