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________________ हिन्दी अनुवाद :- जिनेश्वर भगवन्तों की पूजा के पश्चात् विधिवत चैत्यवंदन करके बाहर निकल कर मैं विद्याधरों के बीच जा बैठा। गाहा : वत्ते जिण-मज्जणए इओ तओ तत्थ संचरंतो हं । अवरोप्पर-दंसिय-कोउगेहिं सहिओ वयंसेहिं ।।७६।। छाया : वर्ते जिन-मज्जने इतस्ततस्तत्र संचरनहम् । अपरापर-दर्शित-कौतुकैः सहितो वयस्यैः ।।७६|| अर्थ :- त्यां जिन-मंदिरमां आम तेम फरतो हुं जात-जातना कौतुकोने मित्रोनी साथे जोतो हतो। हिन्दी अनुवाद :- वहाँ जिनमन्दिर में इधर-उधर घूमता हुआ मैं अपने मित्रों के साथ विविध प्रकार के कौतुक देखता था। गाहा : कत्थइ विलासिणि-जणं पेच्छंतो नच्चमाणयं विविहं । कत्थइ कवि-वर-निवहं जिण-चरियं अहिणवेमाणं ।।७७।। छाया : क्वचित् विलासिनि-जनं पश्यन् नृत्यमानकं विविधम् । क्वचित् कवि-वर-निवहं जिन-चरितं अभिनयन् ।।७७।। अर्थ :- क्यांक विविध रीते नृत्यकरता विलासीजनने जोतो, क्यांक बांदाओना समुदायने तो क्यांक जिनेश्वर भगवंतोना चरित्रने जोतो। हिन्दी अनुवाद :- कहीं पर नाचते हुए विलासी जन को देखता तो कहीं वानरगण को देखता था और कहीं पर जिनेश्वरों के चरित्र दृष्टिपथ में आते थे। गाहा : वीणा-रव-संवलियं कत्थवि गीय-ज्झुणिं निसामेंतो। विरइय-विविहायारं कत्थवि य बलिं पलोएंतो ।।७८।। छाया : वीणा-रव-संवलितं कुत्राऽपि गीत-ध्वनिं निशाम्यन् । विरचित-विविधाचारं कुत्राऽपि च बलिं प्रलोकयन् ।।७८।। अर्थ :- क्यांक वीणाना अवाजथी युक्तगीतना ध्वनि ने सांभळतो क्यांक रचेला विविध प्रकारना आचारने अने बलि ने जोतो ... हिन्दी अनुवाद :- कहीं वीणा की आवाज से युक्त गीतध्वनि सुनता था तो कहीं पर अनेक प्रकार के आचार और बलि को देखता था। 79 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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