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________________ हिन्दी अनुवाद :- तत्पश्चात् क्रम से हम वहाँ पहुंचे जहाँ दशों दिशाओं में नृत्य करती अप्सरागण मनोहर गीत संगीत से भव्यात्माओं को आनन्द प्रदान करती थीं। विविध प्रकार के वस्त्रों से बना सुन्दर चन्दरवा वहाँ था। सुगन्धित पुष्पगृह की रचनावाला, विचित्र प्रकार से लटकते हुए ताराओं से व्याप्त, श्रेष्ठ कपड़े के मण्डप से आंगन का विस्तार सुन्दर लग रहा था। निर्मल जमीन के फर्श वाला एवं चन्द्रमा के किरणों से मनोहर चौक का विभागयुक्त पुष्पमय श्रेष्ठ तोरणों से शोभित सुन्दर मध्यभागवाला जिनमन्दिर था। गाहा : तस्स य दुवार-देसे निम्मल-जल- पूरियाए-वावीए । काऊण पाय-सोयं नियय-वयंसेहिं परियरिओ ।।७३।। जिण-भवण-दुवार-ट्ठिय-उच्चल्लिय-फुल्लमालियोहस्स। पुफ्फाइं गेण्हंतो अंतो विहिणा पविट्ठो हं ।।७४।। छाया: तस्य च द्वार-देशे निर्मल-जल-पूरितायां वाप्याम् । कृत्वा पाद-शौचम् निजक-वयस्यैः परिकलितः ।।७३|| जिन-भवन-द्वार-स्थित उच्चलित-पुष्पमालिका-ओघस्य । पुष्पाणि गृह्णन्तोऽन्तः विधिना प्रविष्टोऽहम् ।।७४।। अर्थ :- ते जिनमंदिरना द्वारना विभागमां निर्मळ पाणीथी भरेली वावडीओमां पोताना मित्रोनी साथे पगधोईने जिनभवनना द्वारनी पासे रहेल पुष्प वेचनारनी पासेथी पुष्पने ग्रहण करतो एवो हुँ विधिपूर्वक जिनमंदिरमा प्रवेश्यो। हिन्दी अनुवाद :- उस जिन मन्दिर के द्वार के विभाग में निर्मल पानी से भरी वापिका में अपने मित्र के साथ पाद शौच करके जिनभवन के द्वार के पास पुष्प-विक्रेता से पुष्प खरीदकर मैं विधिपूर्वक जिनमंदिर में गया। गाहा : पूइय जिणिंद-बिंबे काउं चीइ-वंदणं जहा-विहिणा । वाहिं नीहरिओ हं उवविट्ठो खयर- मज्झम्मि ।।७५।। छाया : पूजित जिनेन्द्र-बिम्बानि कृत्वा चैत्यवन्दनं यथा-विधिना । बहिः निसृतोऽह-मुपविष्टः खेचर-मध्ये ।।७५।। अर्थ :- जिनेश्वर भगवंतोनी पूजा कर्या बाद यथाविधि चैत्यवंदन करीने बहार निकळेलो हु विद्याधरोनी मध्यमां बेठो । 78 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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