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________________ अर्थ :- त्यारपछी ते मारा वड़े कहवायो। “हवे आ जिन-यात्रा तो पूरी थवा आवी छ। आथी हवे तुं “अमारी साथे चाल" तुं अमारो महेमान छ। हिन्दी अनुवाद :- फिर उसने मुझे कहा कि “अब यह जिन-यात्रा पूर्ण होती है। अत: फिलहाल तू मेरे साथ चल, तू हमारा अतिथि है। गाहा : तो भणइ भाणुवेगो एवं एयंति किंतु निसुणेसु । मह चित्तभाणु-पिउणा लहुमागच्छेज्ज इति भणियं ।। ८६।। छाया : ततो भणति भानुवेगः एवं एवमिति किन्तु निश्रुणुहि । मां चित्रभानु पित्रा शीघ्रमागच्छ इति भणितम् ।। ८६।। अर्थ :- त्यारे भानुवेग कहे छे “तमारी आ प्रमाणेनी बात बराबर छे परंतु सांभलो ! मारा पिता चित्रभानुए कहयु छे के तुं जल्दी आवजे।। हिन्दी अनुवाद :- तब भानुवेग ने कहा "तुम्हारी बात ठीक है किन्तु सुनो ! मेरे पिताजी चित्रभानु ने मुझसे कहा है कि तू जल्दी आ जाना। गाहा : ता चित्तवेग ! संपइ तं चिय नगरम्मि एहि महतणए। उक्कंठिओ पगामं जं अच्छइ तुम्ह माउलओ।।८७।। छाया : तस्मात् चित्रवेग ! सम्प्रति त्वमेव नगरे आगच्छ मदीये । उत्कंठितः प्रकामं यत् आस्यते तव मातुलकः ।।८७।। अर्थ :- तेथी हे चित्रवेग ! हमणा तो तुं ज मारा नगरमा आव केम के तारा मामा अत्यंत उत्कंठित छ। हिन्दी अनुवाद :- अत: हे चित्रवेग! फिलहाल तू ही मेरे गाँव में आ, क्यों कि तेरे मामा भी बहुत उत्कंठित हैं । गाहा : एवं च तेण भण्ओि अम्मा-पीईहिं अन्भणुन्नाओ। भाउ-समेओ पत्तो नगरमहं कुंजरावत्तं ।।८८।। छाया :- चित्रवेग नुं मातुलभाई साथे आगमन एवं च तेन भणितोऽम्बा-पितृभ्यां अभ्यनुज्ञातः। भ्रातृ-समेतः प्राप्तो नगरमहं कुञ्जरावर्तम् ।।८८|| अर्थ :- अने आ प्रमाणे तेना वड़े कहेवायेलो हुं माता-पितानी अनुज्ञा वड़े। भाईनी साथे कुंजरावर्त नामना नगरमां गयो। 82 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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