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गाहा :
कय-व्हाणाइ-विहाणो सह पिउणा ताहे पवणगइणा हं । तक्कालुचियं सव्वं गहिऊणं धूव-पुफ्फाइं ।।६५।। नागर-जणेण सहिओ उप्पइओ खग्ग-सामलं गयणं ।। गच्छंतेण कमेणं दिटुं भवण जिणिंदस्स ।।६६।।
छाया:
कृत-स्नानादि-विधानः सह पित्रा तदा पवनगतिना अहम्। तत्कालोचितं सर्वं गृहीत्वा धूप-पुष्पाणि ।।६५|| नागर-जनेन सहित उत्पतितः खड्ग-श्यामलं गगनम् ।
गच्छता क्रमेण दृष्टं भवनं जिनेन्द्रस्य ।।६६।। अर्थ :- करेला स्नानादि वाळो हुं व्यारे ‘पवनगति' पितानी साधे ते कालने उचित धूप-पुष्पादि बघुज ग्रहण करीने..
नगर-जनोनी साथे तलवार जेवा श्याम गगनमां उडया अने क्रम वड़े जता जिनेश्वर परमात्माना भवनो मे जोया ।। हिन्दी अनुवाद :- स्नानादि कर्म करके मैं “पवनगति' पिताजी के साथ तत्कालोचित धूप-पुष्पादि पूजा सामग्री को साथ लेकर नगरजनों के साथ खड्ग जैसे श्याम गगन में उड़ने लगा और जाते समय क्रम से जिनेश्वर-परमात्मा के भवनों को देखा । गाहा :
वायंत-मउय-मारुय-मंदंदोलंत-धय- वडग्गेहिं ।
सन्नंव करेमाणं आगमणत्थं जणोहस्स ।।६७।। छाया:
चलत्-मृदुक-मारुत-मन्दं दोलायमान-ध्वज-पटाप्रैः।
संज्ञामिव कुर्वन् आगमनार्थम् जनौघस्य ।।६७।। अर्थ :- वाता कोमल-पवनथी मन्द-मन्द फरफरती ध्वाजाओ लोकोना समूहने आववा माटे जाणे संज्ञान करती होय तेवी लागे छे । वळी । हिन्दी अनुवाद : - मन्द-मन्द वायु से धीरे-धीरे से झूलती ध्वजाएँ मानों लोगों के समूह के आने का संज्ञान कर रही हों।
गाहा:
दुंदुहि-मउंद-मद्दल-तिलिमा-पमुहेण तूर-सद्देण ।
हक्कारेंतंव जणं जत्ता-समए जिणिंदस्स ।।६८।। छाया :
दुंदुभि-मुकुंद-मर्दल-तिलिमा-प्रमुखेन-तूर्य-शब्देन। आकार्यन्तमिव जनं यात्रा- समये जिनेन्द्रस्य ।।६८।।
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