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________________ गाहा :- जिन यात्रा माटे प्रयाण न्हाओ विलित्त-देहो सुह-नेवत्थो महा-विभूईए । चलिओ जिण-जत्ताए आसन्ने सिद्धकूडम्मि ।।६२।। छाया : स्नातो विलिप्त-देहः शुद्ध नेपथ्यो महा-विभूत्या। चलितो जिन-यात्रायां आसन्ने सिद्ध-कूटे ।।६२।। अर्थ :- स्नान करेलो, विलेपन करेला देहवाळो, शुद्ध आभरणने धारण करेलो महा आडंबर पूर्वक पासे रहेला सिद्धकूट पर जिनयात्रा माटे विद्याधरगण चाल्यो। हिन्दी अनुवाद :- स्नान और विलेपन कर शुद्ध आभरण को धारण करके बड़े आडंबर से विद्याधरगणों ने पास में रहे सिद्धकूट पर जिनयात्रा के लिए प्रयाण किया। गाहा : तेण समं अम्हेवि हु चलिया ता सिग्यमेव आगच्छ । कय-ण्हाणाइ-विहाणा जेण समं चेव गच्छामो ।। ६३।। छाया : तेन सह वयमपि खलु चलितास्तस्मात् शीघ्रमेवागच्छ । कृत-स्नानादि-विधान येन समं चैव गच्छावः ।।६३।। अर्थ :- तेनी साथे अमे पण निश्चेजइए छीए । तेथी विधिपूर्वक करेला स्नानादिवाळा तमे जल्दी आवो जेथी आपणे साथेज जइए । हिन्दी अनुवाद :- उनके साथ में हम भी निश्चित ही चलें अत: विधिपूर्वक स्नानादि कर्म करके तुम शीघ्र ही आओ जिससे हम साथ में ही जा सकें। गाहा : तव्वयणं सोऊणं निय-गेहे आगमो पिउ-समीवे । तेवि य मज्झ वयंसा निय-निय गेहेसु संपत्ता ।।६४।। छाया: तद् वचनं श्रुत्वा निज-गृहे आगतः पितृ-समीपे । तेऽपि च मम वयस्या निज-निज गृहेषु सम्प्राप्ताः ||६४|| अर्थ :- तेना वचन सांभळीने पितानी पासे पोताना घरे आव्यो, अने ते मारा मित्रो पण पोत-पोताना घरे पंहोच्या । हिन्दी अनुवाद :- उसका वचन सुनकर मैं पिताजी के पास अपने घर आया, और मेरे वे सभी मित्र भी अपने-अपने घर गए । 75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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