________________
छाया :- अन्यच्च
बुध-सहितोऽपि खलु सूरः काव्यासक्तो वसंत-महात्म्यात् ।
उपभुज्य मीनं संप्रति मेषस्योत्सुकः इति ।।५३।। अर्थ :- अने वळी बुध ग्रहथी सहित एवो पण सूर्य शुक्रनी साथे रहीने मीन राशिमां जईने पछी मेष राशि मा जाये छे तेम काव्यासक्त माणस गमे तेवो पंडित के शूरवीर होय उत्सुक बने छे, आ बसंतनु माहात्म्य छ । हिन्दी अनुवाद :- और पुन: जैसे बुध ग्रह से युक्त सूर्य भी शुक्र के साथ में रहकर मीन राशि में जाकर मेष राशि में जाता है उसी तरह काव्यासक्त मनुष्य भी चाहे कितना भी पंडित हो या शूरवीर हो फिर भी वह प्रथम मीन को खाकर ही मेष को खाने को उत्सुक होता है, यह वसन्त का माहात्म्य है। गाहा:
ता एरिसे वसंते दिसि-दिसि-पसरंत-परहुया-सद्दे। · वित्थरिय-चच्चरी-ख-मुहरिय-उज्जाण- भूभागे ।।५४।। छाया :
तस्मात् इदृश्यां वसंते दिशि-दिशि प्रसरन-परभृता-शब्दे । विस्तरित
चर्चरिख-मुखरित-उद्यान-भू-भागे ।।५४।। अर्थ :- तेथी आवा प्रकारना वसंतमां दशे दिशा मां फेलाता कोयलना शब्दो विस्तार पामे छते चर्चरी नामना गीतना प्रकार ना अवाज थी बगीचानी भूमि मुखरित थयो । छते हिन्दी अनुवाद :- अत: ऐसे मधुमास में दशों दिशाओं में गुञ्जित कोयल के शब्द विस्तारित होने पर भी चर्चरी नामक गीत की आवाज से उद्यान भूमि मुखरित हो गयी हैगाहा :
विलसंति कामुय-जणा अंदोलिज्जति तरूण-जुवईओ। वित्थरइ पडहय-रवो पियंति वर-वारुणिं तरुणा ।।५५।।
छाया:
विलसन्ति कामुक-जना अन्दोल्यन्ते तरुण-युवतयः ।
विस्तरति पटहक-रव पिवन्ति वर-वारुणिं तरुणाः ।।५।। अर्थ :- कामीलोको विलास करता हता, युवान युवतीओ हिंचका खाती हती, नगाराओने अवाज फेलाई रहयो हतो, अने युवानो उत्तम प्रकारनो दारू पी रहया हतां । युग्मम्
72
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org