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अर्थ :- लाल केसुडानां बहाना वड़े अने भमराओना अवाजना मिश्रणथी मिश्रित शब्दो वड़े स्थाने स्थाने भरेला मुसाफरोनी मोटी चिताओ सळगी रही होय तेम लागे छे ।
हिन्दी अनुवाद :- रक्तवर्णी किंशुक और भ्रमर की आवाज से मिश्रित शब्द से ऐसा लगता है जैसे स्थान-स्थान पर मुसाफिरों की विशालकाय चिता जल रही हो ।
गाहा :
निज्झर - तडेसु तरुणो पवण- पहल्लंत - जल- निबुड्डेहिं । देंतिव जलंजलिं जत्थ पहियाणं । । ५१ । ।
साहा - करेहिं
छाया :
निर्झर-तटेषु
तरवः
पवन- घूर्णन - जल- निमग्नैः ।
शाखा - करैः दंदातीव जलाञ्जलिं यत्र पथिकानाम् ||५१|| अर्थ :- ज्यां झरणाओनां किनारापर पवनथी आंदोलित पाणिमां मग्न वृक्षो जाणे पोतानी शाखा रूपी हाथ वड़े पसार थई रहेला मुसाफरो ने जलाञ्जलि आपता होय तेम लागे छे ।
हिन्दी अनुवाद :- जहाँ झरनों के तट पर पवन से आन्दोलित जल में मगन वृक्षगण मानो अपने शाखा रूपी हाथों द्वारा पथिकों को जलाञ्जलि दे रहे हों।
किंच |
गाहा :
घण- किंसुय- नव- रंगय- विराइया बद्ध- पवर- मयण- हला । सोहई वसंत- लच्छी नव- वहुव्व ।। ५२ ।।
पाडल - कुसुमा किञ्च
छाया :
घन किंशुक - नव-रंग-विराजिता बद्ध-प्रवर-मदन-हला ।
पाटल - कुसुमानि शोभंते, वसंत लक्ष्मी नव वधूरिव ।।५२ ।। अर्थ :- वळी अत्यंत सघन केसुडाओना नवा रंगथी शोभता अने बंधायेला श्रेष्ठ मदनना फूलवाळा गुलाबना फूलोथी नव वधूनी जेम वसंत-लक्ष्मी शोभा पामे छे ।
हिन्दी अनुवाद : पुनः अत्यंत सघन किंशुकगण के नूतन वर्ण से सुशोभित और गुम्फित श्रेष्ठ मदन युक्त पुष्पवाले गुलाब के फूल से नव वधू की तरह वसन्त - लक्ष्मी शोभित हो रही है।
अन्नं च
बुह - सहिओवि हु सूरो कव्वासत्तो वसंत- माहप्या । उवभुंजिऊण मीणं संपइ मेसस्स उक्कोत्ति ।। ५३ ।।
गाहा :
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