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________________ अर्थ :- पांच बाणवाळा (कामदेव) शिकारी वड़े वसंत ऋतु सहित निर्दय रीने अत्यंत हणाती मुसाफरोनी स्त्रीओ ने जोइने . हिन्दी अनुवाद :कामदेव रूप शिकारी और निर्दयी वसंत ऋतु द्वारा मुसाफिरों की पत्नियों की अत्यंत ताड़ना देखकर - गाहा : हसियंव मज्ज - संठिय- कलयंठि- कएण कूइयपयडिय - मंजरि - गुरु- दंत-पंतियं छाया : हसितं इव मध्य-संस्थित-कलकण्ठि कृतेन कूजित - रवेन । प्रकटित-मञ्जरि -गुरु5- दंत पंक्तिकं चूत - विटपैः ।।४८। । अर्थ :- मध्यमां रहेलि कोयलपक्षी द्वारा करायेला पंचम स्वर वडे आंबाना वृक्षो द्वारा प्रगट करायेली मञ्जरिओ द्वारा दांतनी पंक्तिवड़े जाणे हंसती होय तेम लागे छे । हिन्दी अनुवाद :बीच में रही कोयल पक्षी के पंचम स्वर में कूक से आम्रवृक्ष पर प्रगटित मञ्जरियाँ अपने बड़े-बड़े दांतों की पंक्ति से हंसने लगीं। गाहा : दट्ठूण पहिय-निवहं निहयं महु-मास- लोद्धय- नरेण । ओणय-मुहीओ कुसुमंसुएहिं रोयंतिव लयाओ ।। ४९ ।। गाहा : I चूय - विडवेहिं ।। ४८ ।। छाया : दृष्ट्वा पथिक- निवहं निहतं मधु-मास-लुब्धक-नरेण । अवनत मुखाः कुसुमांशुभिः रुदंतीव लताः ।।४९।। अर्थ :वसंत मास रूपी शिकारी मनुष्य वड़े मुसाफरोना समूहने हणायेला जोईने लताओ, पुष्परूपी आंसुओ बहावती अवनतमुखवाळी थइ रडती होय तेम लागे छे ! हिन्दी अनुवाद :- वसन्त- मास रूपी शिकारी मनुष्य द्वारा घायल हुए मुसाफिरों को देखकर लताएँ पुष्परूप अश्रु को बहाती हुई, अवनतमुखवाली हो गईं। - रवेण छाया : मह - पहियाण जलंतिव ठाणे ठाणे महंत चीयाओ । घण- किंसुय- च्छलेणं अलि-रव- मिसिमिसिय सद्दाओ ।। ५० ।। Jain Education International - महत्-पथिकानां ज्वलंतीव स्थाने स्थाने महत्-चिताः । घन किंसुक-छलेन, अलि-रव-मिश्रमिश्रित 70 For Private & Personal Use Only शब्दाः ||५०|| www.jainelibrary.org
SR No.525055
Book TitleSramana 2005 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2005
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
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