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अर्थ :- खरेखर आश्चर्य छे के फल आववाना वखते फूल हाजर होते छते पण तेना कृष्ण-मुखने जाणीने कृपणनी जेम पांदड़ाओ वड़े पलास त्याग कराय छे । हिन्दी अनुवाद :- निश्चय ही आश्चर्यजनक है कि फल आने के समय पुष्प होने पर भी पलास को कृष्णवर्णवाला देखकर पर्णों द्वारा त्याग कर दिया जाता है। गाहा :
दट्टण वण-समिद्धिं पलास-विडवेहिं मउलियं वयणं । अन्नेवि हु अप्पत्ता पर-रिद्धिं नेव विसहति ।।४५।।
छाया:
दृष्ट्वा वन-समृद्धिं पलास-विटपैः मुकुलितं वदनम् ।
अन्येऽपि खल अप्राप्ताः परर्द्धि नैव विसहंते ।।४५|| अर्थ :- वन-समृद्धिने जोईने पलासना वृक्षोनु मुख करमाइ गयु । खरेखर जे अयोग्य छे तेओ बीजानी ऋद्धिने सहन की सकता नथी। हिन्दी अनुवाद :- वन-समृद्धि को देखकर पलास वृक्ष म्लान बन जाता है, निश्चित ही जो अयोग्य है वह दूसरों की ऋद्धि को नहीं सह सकता है। गाहा :- अविय।
पाविय-वसंत-मासो वणम्मि निस्सेस-पीय-लोहियओ।
पिय-विरहिय-पहियाणं भय-जणओ किंसुय-पिसाओ ।। ४६।। छाया :- अपिचः ।
प्राप्त-वसंतमासः वने निःशेष-पीत-लोहितः ।
प्रिय-विरहित-पथिकानां भय-जनकः किंशुक-पिशाचः ।।४६।। अर्थ :- अने वळी वनमां-ऋतु आवे छते जेणे बधु लोही पीधु छे एवो केसुडो रूपी पिशाच प्रियथी विरहित मुसाफरो ने भय उत्पन्न करतो हतो।। हिन्दी अनुवाद :- और पुन: वसंत-ऋतु आने पर जिसने पूर्ण रक्तपान किया है, ऐसा किंशुक रूपी पिशाच प्रिय से विरहित मुसाफिरों को भय उत्पन्न करता है। गाहा :- अन्नं च
पंचसर-लोद्धएणं महु-मास-बिइज्जएण दय-रहियं ।
हम्मंतीओ गाढं दद्णव पहिय-महिलाओ ।।४७।। छाया :- अन्यच्च
पञ्चशर लुब्धकेन मधु-मास द्वितीयेन दया-रहितम् । हन्यमाना गाढं दृष्ट्वेव पथिक-महिलाः ||४७।।
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